Tuesday, June 15, 2010

एक दूजे के लिए

बने एक दूजे के लिए
सुध बुध खोये खोये से
दो हंस फिरे मस्ती लिए
महके बयार चंदनवन से ।

आँखों ही आँखों में पढ़ते
ढाई आखर का ग्रन्थ
दिल से दिल को राह मिले
वे करते सब प्रबंध ।

मृगनयनी वो भरे कुलांचे
मेरे घर के आँगन में
वैरागी सा उसको निरख रहा
अपने मन के प्रांगन में ।

रिमझिम फुहार है उतावली
घटा प्रेम छाने को है
प्रीत की गागर लिए चला मैं
इन्द्रधनुष आने को है ।

दूधिया रात की रश्मियों
बसो हमारे देश
चमचम तारों से आंखमिचौनी
अभी बची है शेष ।

मैं तेरा मोर, तू मेरी मोरनी
आ चल दोनों नृत्य करें
राधे कृष्ण ने रचा न होगा
आ चल ऐसा रास रचें ।

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