Friday, June 25, 2010

मैं

कविता का तेरे गीत मनोहर
गीत मैं बसा मीत हूँ मैं
तेरे सुर का साज सुसज्जित
साज का सप्तम राग हूँ मैं .

कलम तुम्हारी से बह निकले
ऐसा तरल भाव हूँ मैं
पढ़कर जिसे विह्वल हो जाओ
सुंदर सरल भाव हूँ मैं .

बिंदिया की चमक लुभावन
आँखों की तेरे दमक हूँ मैं
धानी चूनर की हया सी लिपटूं
बातों की तेरे ठसक हूँ मैं .

प्रीत का तेरे दीप प्रज्वलित
कंगन की खनखन हूँ मैं
मन का स्नेहिल भाव बनूँ
पायल की रुनझुन हूँ मैं .

निस्तब्ध रात की ख़ामोशी
भीगी पलकों का पानी मैं
दिल की धड़कन तेज बनूँ
घुंघराली लट की उलझन हूँ मैं .

तेजस लक्ष्य की चाह बनूँ
अंतस में बसी चाह हूँ मैं
अधरों की खिलती छवि बनूँ
स्वपनलोक की राह हूँ मैं .

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