चाँद रख सकूं दामन में
मुझमें इतनी ताब कहाँ
मान दोस्त का रखूँ संभाल
बस इतनी सी आब यहाँ .
देखकर सागर जितनी प्रीत
मैं होती हूँ कुछ भयभीत
न ऐसा मेरा भाग्य सुदर्शन
कर दूं मैं खुद को अर्पण .
हंसी शाश्वत का सपना
ख़ुशी तुम्हारी देख हंसूं
मलिन रूप यह कभी न हो
तेरे अधरों पर खिली रहूँ .
बहुत ही प्यारे दोस्त हो तुम
तुम पर है मुझे गुमान
न करना मर्दन मेरा मान
कर सकूं मैं खुद पर अभिमान .
No comments:
Post a Comment