Wednesday, October 27, 2010

चाँद

ऐ चाँद
बहुत मुस्कुरा रहे हो
आज दिन है
तुम्हारा
कितना इतरा रहे हो

एक झलक को
व्याकुल
पूजनीय हो जिनके
रखा है
जिन्होंने
निर्जला व्रत
पाने को तुमसे
अक्षय अक्षत

आतुर है
वे भी देखने को
तुम्हें
जो रखते है तुमसे
ईर्ष्या
उनका स्थान
जो लिया है
तुमने

कवियों के
रहे हो प्रिय
आज प्रिया के भी हो
चाहती है
उतर आओ तुम
मुख पर उसके
कर दो समाहित
उसमें सभी
सोलह चन्द्रकलाएं

साक्षी हो तुम
युगल हंस
के भाव भीने
प्रणय के
परन्तु
याद होगी अवश्य
वह सूनी रात
जब बिरहन के
अश्रुओं ने
कर दी थी नम
तुम्हारी भी पलकें

उपवास
करवाचौथ का
और
अर्चना तुम्हारी
रखना नजर
न जाये
कोई रात काली
रखना ध्यान
न रहे
कोई झोली खाली

देना
सभी को
वरदान
अमर प्रेम का .

5 comments:

  1. first thing ke ye kavita pad kar chand ko bhi apne upar abhiman hone lagega. aur chand ke hamiyat har koi isse din samaj pata hai. pati aur patni dono milkar intezar karta hai iss chand ka itnezar

    ReplyDelete
  2. उपवास
    करवाचौथ का
    और
    अर्चना तुम्हारी
    रखना नजर
    न जाये
    कोई रात काली
    रखना ध्यान
    न रहे
    कोई झोली खाली
    aameen

    ReplyDelete
  3. वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई

    ReplyDelete
  4. अच्छी रचना लिखी है आपने

    ReplyDelete
  5. अपने मन से पूछियेगा कि क्या चाँद दे सकता है किसी को अमर प्रेम का वरदान जो स्वयं ही अकेलेपन में जीता है... अच्छी कविता आशावाद से भरी ! कभी समय निकल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारिये... http://palashkephool.blogspot.com/

    ReplyDelete