पतझड़ में पत्ते पीले
वियोगी से हो जाते हैं
बिरहन के नैना गीले
व्यथा कथा बताते हैं .
शाख पर सजे शोभित
वासंती बयार झुलाते हैं
आता जब पतझड़ क्रोधित
धरा पर आ गिर जाते हैं .
छूट गए रिश्ते सब
टूट जाता है नाता
साथी छूट गए जब
जीवन मौन राग गाता .
कोंपल पल्लव नवीन
देख सभी थे हर्षाते
टूटकर हुए ग़मगीन
फिर से ना जुड़ पाते .
हरा भरा घर अपना
चिड़िया बसाये बसेरा
स्वयं गर्मी में तपना
देना घनी छाँव का डेरा .
कैसा सुंदर था जीवन
रागरंग में याद ना आई
फला हो चन्दन उपवन
जाने की अब बेला आई
पीले पड़ते पत्ते कहते
क्षणभंगुरता की कहानी
आना फिर जाना झड़ते
याद रखो ये जबानी .
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ReplyDeleteसाथी छूट गए जब
जीवन मौन राग गाता ...
जीवन में आने वाले सभी पडावों की सुन्दर प्रस्तुति।
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ReplyDeleteसाथी छूट गए जब
जीवन मौन राग गाता ...
जीवन में आने वाले सभी पडावों की सुन्दर प्रस्तुति।
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आदरणीय रामपति जी आपकी दो तीन कवितायें पढ़ी हैं.. अच्छी लगी हैं आप.. अति आधुनिक समय में महिलायें जिस प्रकार के विद्रोह की कवितायें लिख रही हैं आपकी कवितायें उसके बिलकुल विपरीत हैं.. आपकी कविताओं में स्वाद अभी भी संस्कृति और सभ्यता की है.. जीवन के पुरातन मूल्य और प्राचीन भाव अब भी आपकी कविता में उपस्थित हैं... शरद ऋतू में आप जिस प्रकार पीले पड़ते पत्ते की बात कर रही हैं.. यह धरा अंग्रेजी कविताओं में १८-१९ शताब्दी में देखा गया है और विंटर पोएम्स के नाम से ये प्रसिद्द थे... वहीँ से एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है.. रोबेर्ट बर्न की एक कविता है 'विंटर- ए दिर्ग्ज" .. देखिये कितना साम्य आपकी और रोबेर्ट बर्न्स के कविता में...
ReplyDelete....“The sweeping blast, the sky o’ercast,”
The joyless winter day
Let others fear, to me more dear
Than all the pride of May:
The tempest’s howl, it soothes my soul,
My griefs it seems to join;
The leafless trees my fancy please,
Their fate resembles mine!..... "
शुभकामना सहित..
पीले पड़ते पत्ते कहते
ReplyDeleteक्षणभंगुरता की कहानी
आना फिर जाना झड़ते
याद रखो ये जबानी .
बहुत सटीक पंक्तियाँ है ...पूरी कविता भावों से ओत प्रोत है ...शुक्रिया
एक सुंदर पोस्ट जो बदलते मौसम के मिजाज को पकड़कर चलती है।
ReplyDeleteपीले पड़ते पत्ते कहते
ReplyDeleteक्षणभंगुरता की कहानी
आना फिर जाना झड़ते
याद रखो ये जबानी .
बेहतरीन रचना है !
पीले पड़ते पत्ते कहते
ReplyDeleteक्षणभंगुरता की कहानी
आना फिर जाना झड़ते
याद रखो ये जबानी ...
जीवन की सच्छाई से रूबरू कराती ... अच्छी रचना है ..
बहुत उम्दा चित्रण!!
ReplyDeleteएक अच्छा सन्देश देती कविता मौसम का ही मिजाज़ ही नहीं दिल और दिमाग का मिजाज़ भी बदल गया इतनी अच्छी पोस्ट पढ़ कर के
ReplyDeleteयह आना जाना तो नियम है .....अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteपीले पड़ते पत्ते कहते
ReplyDeleteक्षणभंगुरता की कहानी
आना फिर जाना झड़ते
याद रखो ये जबानी ...
और जो इस क्षणभंगुरता को याद रख सकता है , वही जीवन जीता है ...ख़ुशी के लिए ...ख़ुशी बांटने के लिए !
मेरा एक शेर कुछ इसी आशय का है...ठीक से अभी याद नहीं लेकिन ऐसा ही कुछ है:-
ReplyDeleteआँधियों का तो बना करता बस बहाना है
जर्द (पीले) पत्ते तो खुद आप गिरा करते हैं
बहुत ही कमाल की कविता है आपकी...मेरी बधाई स्वीकार करें..
नीरज
क्षणभंगुर जीवन को बहुत ही सुन्दरता से दर्शाया है…………एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर रचना ..गहरे भाव लिए यह दिल को छु गयी ..........लाजवाब
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