Tuesday, December 7, 2010
पल्लव
तरू का लघु रूप हूँ मैं
पल्लव नवीन कहलाता हूँ
सुकुमार सूक्ष्म कोमल हूँ मैं
सभी के मन को भाता हूँ .
बीज रोप दिया माली ने
नित्य प्रतीक्षा करता है
आँखें खोली अंकुर ने
मन ही मन हँसता है .
छोटा सा एक नन्हा सा
पाषाण भेद कर आया
धरती ने है रचा मुझे
ममता से अपनी सहलाया .
मेरे जैसे पल्लव पुलकित
कल वटवृक्ष बन जायेंगे
कंद मूल से वे छलकत
सृष्टि रक्षक कहलायेंगे .
मैं हूँ तुम्हारा बालरूप
पेड़ घना हो जाऊँगा
जन्मेंगे मुझ से पल्लव
उन पर दुलार लुटाऊंगा .
करते कलोल काक कोकिल
मीठा संगीत सुनायेंगे
तोता मैना के किस्से
पथिकों का मन बहलाएँगे .
हरी भरी वसुंधरा को
बंजर ना होने देंगे हम
हरित फलित रहे सदा
अक्षत स्मित रखेंगे हम .
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सुन्दर सन्देश देती खूबसूरत कविता.
ReplyDeleteहरी भरी वसुंधरा को
ReplyDeleteबंजर ना होने देंगे हम
हरित फलित रहे सदा
अक्षत स्मित रखेंगे हम
बहुत सुन्दर ... कुछ बोल रही है ये रचना ....सन्देश है इस रचना में ...
पाषाण भेद कर उगे ये पल्लव एक दिन वटवृक्ष बन जायेंगे ...
ReplyDeleteशुभ सन्देश ...!
आपकी रचनाओं में शब्द मोतियों की जड़े होते हैं जो रचना के भाव की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं...अद्भुत शब्द और उत्तम भाव मिल कर आपकी रचना को श्रेष्ठ बना देते हैं...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
good.
ReplyDeleteहरी भरी वसुंधरा को
ReplyDeleteबंजर ना होने देंगे हम
हरित फलित रहे सदा
अक्षत स्मित रखेंगे हम .
bबहुत सुन्दर सन्देश देती रचना।अज फिर से हरित क्रान्ति की जरूरत है पर्यावरन को बचाने के लिये। बधाई।
शब्द भी ज़ोरदार हैं और भाव भी!!!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
kanchan varansi Tue, Dec 7, 2010 at 9:58 PM
ReplyDeleteacchi rachana ke liye badhai.
kanchan varansi
पल्लव को आशा का प्रतीक मान सुन्दर कविता रची है ... मात्राओं का ध्यान रखेंगी तो कविता और भी संतुलित और म्यूजिकल बन पड़ेगी... सुमित्रानंदन पन्त जी ने १९२६ में पल्लव कविता संग्रह में इसी तरह की कविताये लिखी थी... एक कविता का अंश देखिये...
ReplyDelete"‘सौ सौ साँसों में पत्रों की
उमड़ी हिमजल सस्मित भोर’, के बदले
‘उमड़ा हिमजल सस्मित भोर’,-तथा
रुधिर से फूट पड़ी रुचिमान
पल्लवों की यह सजल प्रभात’ के बदले
‘रुधिर से फूट पड़ा रुचिमान
पल्लवों का यह सजल प्रभात’,"...
समय बदलने के साथ आपने अपनी कविता में विषय को विस्तृत किया है ... पर्यावरण जैसे नवीन चिताओं का समावेश किया है.. यह काव्य प्रगति दर्शाती है... आपनी व्यापक सोच को भी दिखाती है... शुभकामना सहित... कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारिये ...
करते कलोल काक कोकिल
ReplyDeleteमीठा संगीत सुनायेंगे
तोता मैना के किस्से
पथिकों का मन बहलाएँगे .
हरी भरी वसुंधरा को
बंजर ना होने देंगे हम
हरित फलित रहे सदा
अक्षत स्मित रखेंगे हम
bahut pyari rachna....ek dum taaje hawa ka jhonka...:)
subhkamnayen!
हरी भरी वसुंधरा को
ReplyDeleteबंजर ना होने देंगे हम
हरित फलित रहे सदा
अक्षत स्मित रखेंगे हम bahut sunder aasha hai aapki har pallav hi panap kar ped banta hai jisne pallav ka mahatv samajh liya...vo hi hara bhara ho bad sakta hai...
हरी भरी वसुंधरा को
ReplyDeleteबंजर ना होने देंगे हम
हरित फलित रहे सदा
अक्षत स्मित रखेंगे
लाजवाब लेखन
बेहद खूबसूरत ………सारे भाव उमड आये हैं।
ReplyDeletevery gud.......
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