कोहरे के आलिंगन में
है भोर ने आँखे खोली
चारों ओर देख कुहासा
न निकली उसकी बोली ।
सरजू भैया मिलें कहीं
तो उनसे सब बोलो
क्यों ओढ़े हो बर्फ रजाई
अब तो आंखे खोलो ।
दर्शन दो, हे आदित्य
जन जीवन क्यों ठहराया है
जड़ चेतन सब कंपकंपा रहे
कैसा कहर बरपाया है ।
नरम धूप का वह टुकड़ा
गुनगुनी सी कितनी भली लगे
फैला दो अपना उजास
चराचर को भी गति मिले
करूँ किसको मैं नमस्कार
तुम तो बस छिपकर बैठे हो
करूँ किसको अर्ध्य अर्पण
तुम तो बस रूठे बैठे हो ।
रक्त जम गया है नस में
पल्लव भी मुरझाया है
डोर खींच ली जीवन की
निर्धन का हांड कंपाया है ।
इस मौसम में एक सहारा
बस अमृत का प्याला
लबालब जिसमें नेह भरी
हो साकी, कोई पीने वाला ।
है भोर ने आँखे खोली
चारों ओर देख कुहासा
न निकली उसकी बोली ।
सरजू भैया मिलें कहीं
तो उनसे सब बोलो
क्यों ओढ़े हो बर्फ रजाई
अब तो आंखे खोलो ।
दर्शन दो, हे आदित्य
जन जीवन क्यों ठहराया है
जड़ चेतन सब कंपकंपा रहे
कैसा कहर बरपाया है ।
नरम धूप का वह टुकड़ा
गुनगुनी सी कितनी भली लगे
फैला दो अपना उजास
चराचर को भी गति मिले
करूँ किसको मैं नमस्कार
तुम तो बस छिपकर बैठे हो
करूँ किसको अर्ध्य अर्पण
तुम तो बस रूठे बैठे हो ।
रक्त जम गया है नस में
पल्लव भी मुरझाया है
डोर खींच ली जीवन की
निर्धन का हांड कंपाया है ।
इस मौसम में एक सहारा
बस अमृत का प्याला
लबालब जिसमें नेह भरी
हो साकी, कोई पीने वाला ।
इस मौसम में एक सहारा
ReplyDeleteबस अमृत का प्याला
लबालब जिसमें नेह भरी
हो साकी, कोई पीने वाला ।
वाह बहुत सुन्दर भाव हैं। बधाई आपको।
इस ठंड भरे मौसम में एक अच्छी चाय भर मिल जाये।
ReplyDeleteसर्दी का खूबसूरत चित्रण किया है।
ReplyDeletesardee ka mast nazara
ReplyDeleteसूरज से पूछा तो बोला, मैं वैसा का वैसा हूँ,
ReplyDeleteतूने मुख पर लिया आवरण, इसी लिये ठंडा लगता हूँ।
रक्त जम गया है नस में
ReplyDeleteपल्लव भी मुरझाया है
डोर खींच ली जीवन की
निर्धन का हांड कंपाया है ।
sardi me sabse adhik nirdhan hi thithurta hai...sachchi me........kitna pyara chitran...
वाह क्या मौसम आया है...क्या रंग जमाया है ...आपकी कविता ने ...बहुत खूब ..शुक्रिया
ReplyDeleteसर्दी का सटीक वर्णन किया है आपने...बधाई
ReplyDeleteजब से यहाँ महाराष्ट्र के खोपोली में रहना हुआ है सर्दी क्या होती है भूल ही गए हैं वर्ना हमारे जयपुर में सर्दी कभी कभी खून जमा दिया करती थी.
नीरज
करूँ किसको मैं नमस्कार
ReplyDeleteतुम तो बस छिपकर बैठे हो
करूँ किसको अर्ध्य अर्पण
तुम तो बस रूठे बैठे हो ...
सर्दी की कुन्मुनाति धूप ने भी रज़ाई ओढ़ ली है ... बहुत सुंदर रचना है ..
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसर्दी का सटीक वर्णन किया है आपने
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