Monday, December 20, 2010

सर्दी













कोहरे के आलिंगन में
है भोर ने आँखे खोली
चारों ओर देख कुहासा
न निकली उसकी बोली ।

सरजू भैया मिलें कहीं
तो उनसे सब बोलो
क्यों ओढ़े हो बर्फ रजाई
अब तो आंखे खोलो ।

दर्शन दो, हे आदित्य
जन जीवन क्यों ठहराया है
जड़ चेतन सब कंपकंपा रहे
कैसा कहर बरपाया है ।

नरम धूप का वह टुकड़ा
गुनगुनी सी कितनी भली लगे
फैला दो अपना उजास
चराचर को भी गति मिले

करूँ किसको मैं नमस्कार
तुम तो बस छिपकर बैठे हो
करूँ किसको अर्ध्य अर्पण
तुम तो बस रूठे बैठे हो ।

रक्त जम गया है नस में
पल्लव भी मुरझाया है
डोर खींच ली जीवन की
निर्धन का हांड कंपाया है ।

इस मौसम में एक सहारा
बस अमृत का प्याला
लबालब जिसमें नेह भरी
हो साकी, कोई पीने वाला । 

11 comments:

  1. इस मौसम में एक सहारा
    बस अमृत का प्याला
    लबालब जिसमें नेह भरी
    हो साकी, कोई पीने वाला ।
    वाह बहुत सुन्दर भाव हैं। बधाई आपको।

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  2. इस ठंड भरे मौसम में एक अच्छी चाय भर मिल जाये।

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  3. सर्दी का खूबसूरत चित्रण किया है।

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  4. सूरज से पूछा तो बोला, मैं वैसा का वैसा हूँ,
    तूने मुख पर लिया आवरण, इसी लिये ठंडा लगता हूँ।

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  5. रक्त जम गया है नस में
    पल्लव भी मुरझाया है
    डोर खींच ली जीवन की
    निर्धन का हांड कंपाया है ।

    sardi me sabse adhik nirdhan hi thithurta hai...sachchi me........kitna pyara chitran...

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  6. वाह क्या मौसम आया है...क्या रंग जमाया है ...आपकी कविता ने ...बहुत खूब ..शुक्रिया

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  7. सर्दी का सटीक वर्णन किया है आपने...बधाई
    जब से यहाँ महाराष्ट्र के खोपोली में रहना हुआ है सर्दी क्या होती है भूल ही गए हैं वर्ना हमारे जयपुर में सर्दी कभी कभी खून जमा दिया करती थी.
    नीरज

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  8. करूँ किसको मैं नमस्कार
    तुम तो बस छिपकर बैठे हो
    करूँ किसको अर्ध्य अर्पण
    तुम तो बस रूठे बैठे हो ...

    सर्दी की कुन्मुनाति धूप ने भी रज़ाई ओढ़ ली है ... बहुत सुंदर रचना है ..

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  9. सर्दी का सटीक वर्णन किया है आपने

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