Sunday, June 26, 2011

मोती लड़ियाँ






 











घन लाये भर
बूंदों की खेप 
तपते मन पर 
प्रीत का लेप

झूम उठा 
ठूंठ तरूवर 
नजर उठा 
देखे प्रियवर 

सुगबुगा उठी 
एक बंद कली
शोर है कैसा 
गली गली 

वन उपवन 
मोरनी नाचे 
खिला है मन 
मलय भागे 

रिमझिम करती 
आई बदरिया 
ओढ़ के नाचे 
धवल चदरिया 

गौरैया दुबकी 
पंख हैं भीगे 
यादों में डुबकी
उड़ता मन आगे 

मोती लड़ियाँ 
मेरे आँगन 
जुडती कड़ियाँ 
तुमसे साजन . 

Wednesday, June 22, 2011

मिटटी धरती वाली





मैं मिटटी धरती वाली 
कहते  हैं मेरे अपने 
खिसक गई धरती पैरों से 
रोते हैं मेरे सपने 

मैं हूँ एक मिटटी बंजर 
जिसमें न कोई अंकुर होगा 
नहीं फलेगा कोई फल
फूल  का भी आसार न होगा 

आते जाते ताल तलैया 
भिगो न पाए मेरे तन को 
एक बार तो गंगा मैया 
जुड़ा न पाई तपते मन को

मेरा कुछ उपयोग नहीं 
व्यर्थ बना यह जीवन है 
पथिक को छाया न कहीं 
बोझ बड़ा यह हर पल है 

मिटटी है कहलाती जननी 
सब रस देती नियति के 
उस ममता को क्या कहिये 
सहती दंश विधाता के 

गमले की मिटटी हो 
या हो धरती वाली 
कितने रत्न समेटे हो 
या बीहड़ बंजर गाली 

अपना सर्वस्व मिटा कर भी 
चाहे अंकुर का खिलना 
फल और फूल खिलाकर भी
चाहे चुप्पी ओढना  .

Monday, June 20, 2011

मरीचिका




मरीचिका के पीछे चलती 
आ पहुँचीं मैं रेगिस्तान 
बिन जीवन के सांसें तपती 
दूर तक फैला है वीरान 

मिले कहीं पानी का सोता 
जीने का अवलम्बन बन 
हारी हिम्मत क्यों रोता 
आँसूं पी जा न कर क्रन्दन 

गरम हवा के सहे थपेड़े 
रेत कहे टिकने न दूं 
हवा बावरी फिरे उड़े 
एक पल भी थमने न दूं 

कैसे उसे नकार सकूं 
प्रारब्ध प्रथम जो है मेरा 
नियति को स्वीकार करूँ 
निर्बल लिखा भाग्य मेरा 

बीहड़ पथ पर चलते जाना
बस इतनी ही मंजिल है 
मंजिल यदि चाहूं पाना 
वह उतनी ही मुश्किल है 

बढती हूँ निपट अकेली 
मरू ही मेरा बसेरा है
हंसती हुई जो मिले चमेली 
समझो आया  नया सवेरा है. 

Thursday, June 16, 2011

तुम सब हो



तुम सब  हो 
मैं कुछ  नहीं 
तुम प्रेम हो 
मैं पात्र नहीं 

तुम दरिया हो 
मैं बूँद नहीं 
तुम बहते हो 
मेरा अस्तित्व नहीं 

तुम दीपक हो 
मैं तेल नहीं 
देते प्रकाश हो 
मैं तिमिर गली 

तुम पुष्प सुवासित 
मैं गंधहीन 
तुम रसिया 
मैं रसहीन 

  मुख पर विराजे  
चन्द्र चकोर 
मैं आन बसूँ
जाने किस ओर 

प्रीत की गगरी 
हलाहल छलके
मरूं में पसरी 
रेत हूँ जैसे 

तुम मंदिर का 
मंत्रोच्चार 
मैं हूँ भाग्य का
अधलिख पात .  

Monday, June 13, 2011

जन्मों का नाता


















आँखों में लिए 
प्रेम का समन्दर 
मिले दो दोस्त 
जीवन कितना सुन्दर

इस प्यास को 
बुझने न देना 
प्रीत की लौ को
मिटने न देना 

धड़कता है दिल 
लेता उनका नाम 
हर ओर तुम ही 
बसे  हो श्याम

धार कजरे सी 
नैनों में बसना 
डोर सुनहरी सी 
जैसे एक सपना 

कहते हैं सब 
दूर गए तुम
मुझसे तो पूछो
बसाये हुए हम 

पलक जो झपकी 
देखी मूरत उनकी  
मन से जो  पुकारा 
छवि सम्मुख जिनकी 

कई जन्मों का 
नाता है अपना 
लिखा विधना का 
टरता  है कितना .

Wednesday, June 8, 2011

राही हैं हम



राही हो तुम 
राही है हम 
मंजिल कहाँ 
न जाने कल

था कौन सा 
मोहक  मोड़ 
सम्मोहन सा 
दिया है छोड़ 

बढ़ चले कुछ 
पल कदम 
जीवन हुआ कुछ 
हमकदम 

छन छन आती 
रश्मियाँ तनी 
सखा जैसी थी 
छाँव थोड़ी घनी 
 
रेत पर छोड़ 
पैरों के निशां
जाएँ किस ओर 
जहाँ हो आशियाँ

जुगनू कहे 
मेरी राह कहाँ 
सूरज बोले 
तम है वहां

अपने साए से 
भागे दृग 
अनजान महक से 
कस्तूरी मृग .

Sunday, June 5, 2011

सफलता




 
सफलता के जुगनू 
हंसकर टिमटिमाते हैं 
कुछ पाने की खुशबू 
नैन झिलमिलाते हैं 

अपनों की ख़ुशी
फाग बन जाती है 
होंठो की निर्मल हंसी 
दीपमाला जलाती है 

लगता है सारा 
संसार जैसे झूमता 
हर ओर लगता 
वसंत ऐसे घूमता 

किसने है देखा 
नींव का पत्थर 
जिस पर खड़ा 
आशाओं का मंजर 

अदृश्य रहकर भी 
बहुत मुस्कुराता 
हिलने न दूंगा 
वादा भी दोहराता 

रहना डटे तुम 
तूफ़ान में भी 
हँसना भी तुम 
बियाबान में भी 

स्वयं की आहुति 
किसी का उजास 
प्रखर होती प्रगति
पहुंचाती  प्रकाश .