घन लाये भर
बूंदों की खेप
तपते मन पर
प्रीत का लेप
झूम उठा
ठूंठ तरूवर
नजर उठा
देखे प्रियवर
सुगबुगा उठी
एक बंद कली
शोर है कैसा
गली गली
वन उपवन
मोरनी नाचे
खिला है मन
मलय भागे
रिमझिम करती
आई बदरिया
ओढ़ के नाचे
धवल चदरिया
गौरैया दुबकी
पंख हैं भीगे
यादों में डुबकी
उड़ता मन आगे
मोती लड़ियाँ
मेरे आँगन
जुडती कड़ियाँ
तुमसे साजन .
भावों की सुन्दर लड़ियाँ खूबसूरत लगीं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteमोती जैसे छोटे छोटे शब्द, सौन्दर्य पूर्ण।
ReplyDeleteझूम उठा
ReplyDeleteठूंठ तरूवर
नजर उठा
देखे प्रियवर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बधाई.....
मौसम खूबसूरत साकार हुआ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteइसकी ध्वन्यात्मकता ही रचना का सौन्दर्य है!
आपकी कवितायें एक अलग ही सौंदर्य लिए होती है. उनमे मिठास और अपना पण होता है. मुझे बहुत प्रभावित करती हैं.
ReplyDeleteआभार
सुगबुगा उठी
ReplyDeleteएक बंद कली
शोर है कैसा
गली गली
very nice
नमस्कार !
ReplyDeleteआपकी कवितायें एक अलग ही सौंदर्य में सिमटी होती है.
जिस में मिठास और अपना पन. जो प्रभाव छोडती है ,
आभार