तुम सब हो
मैं कुछ नहीं
तुम प्रेम हो
मैं पात्र नहीं
तुम दरिया हो
मैं बूँद नहीं
तुम बहते हो
मेरा अस्तित्व नहीं
तुम दीपक हो
मैं तेल नहीं
देते प्रकाश हो
मैं तिमिर गली
तुम पुष्प सुवासित
मैं गंधहीन
तुम रसिया
मैं रसहीन
मुख पर विराजे
चन्द्र चकोर
मैं आन बसूँ
जाने किस ओर
प्रीत की गगरी
हलाहल छलके
मरूं में पसरी
रेत हूँ जैसे
तुम मंदिर का
मंत्रोच्चार
मैं हूँ भाग्य का
अधलिख पात .
यही है सत्य और जीवन दर्शन्।
ReplyDeleteतुम सब हो
ReplyDeleteमैं कुछ नहीं
तुम प्रेम हो
मैं पात्र नहीं
bhaut khub dear
"तुम सब हो"
ReplyDeleteisi ek pankti mein sab kuchh samahit hai
bahot hi achcha srijan......
bahot bahot badhai aapko
"तुम सब हो
ReplyDelete-क्या बात है...बहुत बढ़िया.
रचना में समर्पण की भावना दिखती है क्योंकि तुम सब कुछ हो और मै कुछ भी नहीं जैसा भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर रेखाचित्र।
ReplyDeleteसमर्पण की यह अभिव्यक्ति .. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletewah!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विनम्र भाव।
ReplyDeleteतुम मंदिर का
ReplyDeleteमंत्रोच्चार
मैं हूँ भाग्य का
अधलिख पात .bahut behatrin abhibyakti.badhaai aapko.
ploease visit my blog.thanks
तुम मंदिर का
ReplyDeleteमंत्रोच्चार
मैं हूँ भाग्य का
अधलिख पात .
जीवन के सत्य को बहुत सुंदरता से उकेरा है..बहुत सुन्दर
तुम मंदिर का
ReplyDeleteमंत्रोच्चार
मैं हूँ भाग्य का
अधलिख पात ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सुन्दर भाव।