प्रेम का समन्दर
मिले दो दोस्त
जीवन कितना सुन्दर
इस प्यास को
बुझने न देना
प्रीत की लौ को
मिटने न देना
धड़कता है दिल
लेता उनका नाम
हर ओर तुम ही
बसे हो श्याम
धार कजरे सी
नैनों में बसना
डोर सुनहरी सी
जैसे एक सपना
कहते हैं सब
दूर गए तुम
मुझसे तो पूछो
बसाये हुए हम
पलक जो झपकी
देखी मूरत उनकी
मन से जो पुकारा
छवि सम्मुख जिनकी
कई जन्मों का
नाता है अपना
लिखा विधना का
टरता है कितना .
शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
ReplyDeleteकविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है.
खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद.|.............
जन्मों का नाता हमेशा के लिए होता है
ReplyDeleteभावभीनी रचना ... सोचा आज पढ़ना दर्ज कर दिया जाए नही तो मेल बॉक्स में ही पढ़ लेते थे ..
ReplyDeleteआँखों में लिए
ReplyDeleteप्रेम का समन्दर
मिले दो दोस्त
जीवन कितना सुन्दर
ye frds ke liye hai ya life partner ke liye.
mujhe as a frd bhaut achi lagi ye pankitya
छोटी छोटी क्षणिकायें मिलजुल कर सुन्दर रुप निखार रही हैं प्रेम का.
ReplyDeleteपलक जो झपकी
ReplyDeleteदेखी मूरत उनकी
मन से जो पुकारा
छवि सम्मुख जिनकी
Behad sashakt panktiyan hain ye....aur utnee hee bhavuk!
मिलना तो कई जन्मों की इच्छाओं का निष्कर्ष है।
ReplyDeleteखूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|
ReplyDeleteधड़कता है दिल
ReplyDeleteलेता उनका नाम
हर ओर तुम ही
बसे हो श्याम
धार कजरे सी
नैनों में बसना
डोर सुनहरी सी
जैसे एक सपना.
बढ़िया भाव से रचित सुंदर कविता.
बहुत सुन्दर
ReplyDeletesundar abhivyakti!!
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