Wednesday, July 6, 2011

कैंची
















तेज़ बहुत है 
पर काटती नहीं
बल्कि गढ़ती है 
नया कुछ कहीं 

काट दे  अवांछित 
बीच में जो आये 
आकार दे  अपेक्षित  
कि मन को भाए  

इस्पात है भरा 
हथियार नहीं है  
सोने सा है खरा
दुर्लभ नहीं है 

प्रेम को न काटे 
दोस्ती की पैरहन
बस भाईचारा बांटे
सदभावना गहन 

अनगढ़ को सूरत
बुराई  को दूर करे 
बनाये ऐसी मूरत 
अच्छाई का दंभ भरे 

धार है बहुत 
रखती है पैनापन 
दोस्त हो या दुश्मन 
कैसा है नयापन 

कैंची है अनूठी 
पर प्रीत न काटे 
लगती नहीं झूठी 
बैर भी न बांटे

20 comments:

  1. कैंची है अनूठी
    पर प्रीत न काटे
    लगती नहीं झूठी
    बैर भी न बांटे

    kya baat hai madam je, apne toh kanchi ka arth he change kar diya

    ReplyDelete
  2. कैंची पर ही कविता लिख दी हा हा हा
    काट दे अवांछित
    बीच में जो आये
    आकार दे अपेक्षित
    कि मन को भाए
    सच कहा है 'जहाँ ना पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवि.

    ReplyDelete
  3. धार है बहुत
    रखती है पैनापन
    दोस्त हो या दुश्मन
    कैसा है नयापन

    कैंची है अनूठी
    पर प्रीत न काटे
    लगती नहीं झूठी
    बैर भी न बांटे

    सच में यह कैंची .....अबांछित को काटती है और बांछित को जोडती है ...आपने कैंची के माध्यम से सार्थक भाव को संप्रेषित करते हुए एक सुंदर सन्देश भी दिया है .....आपका आभार

    ReplyDelete
  4. कैंची पर भी कविता लिखी जाएगी सोचा न था... बेहतरीन कविता...

    ReplyDelete
  5. काटते भी रहना चाहिये, अवांछित तत्व।

    ReplyDelete
  6. प्रेम को न काटे
    दोस्ती की पैरहन
    बस भाईचारा बांटे
    सदभावना गहन
    Wah, kya kavita rachee hai qaichee pe! Maine to kabhee soch bhee nahee tha!

    ReplyDelete
  7. अरे वाह..अनूठा विषय और अनूठी रचना...बधाई

    नीरज

    ReplyDelete
  8. एक अलग अंदाज...बहुत खूब!!

    ReplyDelete
  9. अनगढ़ को सूरत
    बुराई को दूर करे
    बनाये ऐसी मूरत
    अच्छाई का दंभ भरे

    कैंची का बिम्ब लेकर गहन अभिव्यक्ति लिए पंक्तियाँ रची आपने..... बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  10. आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

    ReplyDelete
  11. काट दे अवांछित
    बीच में जो आये
    आकार दे अपेक्षित
    कि मन को भाए ||

    बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  12. वाह ...बहुत बढि़या ।

    ReplyDelete
  13. कैंची की धार जैसी जबान या कलम भी तो यही करती है !
    सुन्दर !

    ReplyDelete
  14. बहुत ही अच्छी और अनूठी रचना है आपकी । ऐसे ही लिखते रहिए । शुभकामनायें

    ReplyDelete
  15. aaj bahut dino baad aapko pada....hamesha ki tarah aapke shabo ke pairhan saleeke se bani hoti hai.

    ReplyDelete
  16. ......बहुत बढ़िया
    कैंची के माध्यम से सुंदर सन्देश भी दिया है .....आपका आभार

    ReplyDelete
  17. गहन भाव समेटे बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete