Sunday, June 5, 2011

सफलता




 
सफलता के जुगनू 
हंसकर टिमटिमाते हैं 
कुछ पाने की खुशबू 
नैन झिलमिलाते हैं 

अपनों की ख़ुशी
फाग बन जाती है 
होंठो की निर्मल हंसी 
दीपमाला जलाती है 

लगता है सारा 
संसार जैसे झूमता 
हर ओर लगता 
वसंत ऐसे घूमता 

किसने है देखा 
नींव का पत्थर 
जिस पर खड़ा 
आशाओं का मंजर 

अदृश्य रहकर भी 
बहुत मुस्कुराता 
हिलने न दूंगा 
वादा भी दोहराता 

रहना डटे तुम 
तूफ़ान में भी 
हँसना भी तुम 
बियाबान में भी 

स्वयं की आहुति 
किसी का उजास 
प्रखर होती प्रगति
पहुंचाती  प्रकाश .

11 comments:

  1. अपनों की ख़ुशी
    फाग बन जाती है
    होंठो की निर्मल हंसी
    दीपमाला जलाती है
    बहुत सुंदर प्रस्तुति ....

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  2. किसने है देखा
    नींव का पत्थर
    जिस पर खड़ा
    आशाओं का मंजर
    achhi abhivyakti

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  3. कुछ नया लिख मेरे नन्हे दोस्त ! कितनी बार कितने रचनाकारों ने बोला है ये सब. कंगूरे ना होते तो क्या कोई सोचता कि यहाँ कहीं कोई नींव भी है?
    हो सकता है धरती के भीतर और भी दबी नीवें हो .नीवों की सार्थकता उस पर खड़ी इमारत,भवन,महल से है.नीव को अहंकार नही होना चाहिए कि वो ना होती तो इस भवन का भविष्य क्या होता? हा हा हा उसकी महानता तो खुद को अदृश्य करके दर्शनीय कुछ बनाना है.है ना?

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  4. स्वयं की आहुति
    किसी का उजास
    प्रखर होती प्रगति
    पहुंचाती प्रकाश .

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. स्वयं की आहुति
    किसी का उजास
    प्रखर होती प्रगति
    पहुंचाती प्रकाश .

    bhaut acha likha hai madam je

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  6. किसने है देखा
    नींव का पत्थर
    जिस पर खड़ा
    आशाओं का मंजर

    -बहुत उम्दा ख्याल!!

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  7. आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!

    एक मिसरा यह भी देख लें!

    दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
    खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है

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  8. सुन्दर भाव उड़ेलते शब्द।

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  9. सुंदर भावों से जन्मी रचना ...

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  10. किसी का उजास
    प्रखर होती प्रगति
    पहुंचाती प्रकाश .
    सुन्‍दर शब्‍दों के साथ भावों का बेहतरीन संयोजन ...।

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  11. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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