साभार चित्र गूगल |
कल्पना के घोड़े पर सवार
मन भरता स्वछन्द उड़ान
भरने को रहता तैयार
अल्पना में एक नया प्राण .
नित देखे सपने नए नए
अलभ्य सुलभ पा जाऊं मैं
कुछ छोटे कुछ रहे विशेष
अधूरे जो साकार करूँ मैं.
सपनों की असंख्य कतार
छोर न इसका दिखता है
एक से जो पा जाऊं पार
सम्मुख समूह उमड़ता है .
विदित मुझे ये असंभव है
चंचल मन को मनाये कौन
सुंदर सा स्वपन सजाया है
सपने से मुझे जगाये कौन .
गढ़ना उसका हुआ सफल
जिसने है पा लिया लक्ष्य
अधूरे सपने हुए विकल
है वृहद यह प्रश्न यक्ष .
यात्रा जीवन की बीत रही
समय का पहिया गतिमान
उसकी धुरी है घूम रही
कहता मैं बहुत बलवान .
मनुज ह्रदय की प्रकृति
रच लेता अपना संसार
अपना ईश्वर अपनी धरती
सुप्त कामनाओं का भंडार .
अधूरे सपनों का मेला
नैनो में उन्हें बसाये रहना
आएगा प्रीत लहर का रेला
आशा किरण थामे रखना .
बहुत सुन्दर भाव संयोजन।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है ...
ReplyDeleteकल्पना के घोड़े पर सवार
ReplyDeleteमन भरता स्वछन्द उड़ान
अच्छी कविता
यात्रा जीवन की बीत रही
ReplyDeleteसमय का पहिया गतिमान
उसकी धुरी है घूम रही
कहता मैं बहुत बलवान .
dil ko udwelit karti rachna
भाव अच्छा लगे।
ReplyDeleteस्वप्न जीवन को दिशा देती है.. प्रेम आँखों में स्वप्न देता है.. आपकी कविता ह्रदय को स्पंदित कर रही है.. सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteविचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है