सूरज था अपने यौवन पर
बिखरी अभी थी लालिमा
घन दल आये उस पर
छा गई घोर कालिमा .
बसंत था कुछ अलसाया
थी बहारें भी बहकी हुई
कौन राह से पतझड़ आया
बगिया सारी सुनसान हुई .
आशा थी पुष्प आया
नया सा मेरे उपवन में
बैरी अंधड़ बन आया
वीरानी दे गया चेतन में .
बेमौसम की ये बरसात
बहा ले गई मन का गाँव
दूर कर दिया अपनों से
रहा नहीं कोई अपना ठाव .
चंदा था बहुत गुमान किए
चांदनी संग करता अठखेली
मैं तेजस घट साथ लिए
रूपस न तुम मुझसे अलबेली .
कैसे बदला मीत मेरा
जीवन हो गया रसहीन
तय नहीं था जो गया गुजर
कैसे रहना होगा तुम बिन .
कैसे बदला मीत मेरा
ReplyDeleteजीवन हो गया रसहीन
तय नहीं था जो गया गुजर
कैसे रहना होगा तुम बिन . ...
बहुत सुन्दर और नवीन उपमा वाली कविता.. मन मुग्ध हो गया
बहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबेहद भावप्रवण रचना।
ReplyDeletewaah........ bahut hi khoobsurat bhaw
ReplyDelete