चित्र साभार गूगल |
पगडण्डी
जो तुम तक
नहीं पहुँचती
नहीं जाता मैं उस पर
हवाएं
जो नहीं लाती
तुम्हारी कुशल
नहीं सिहराती मुझे
संगीत
जिसमें तुम ना हो
मन के तारों को
नहीं करता झंकृत
नींद
तुम्हारे सपने ना हो
जिसमें आती नहीं
ना ही सुलाती मुझे
सुबह
नहीं होती खुशनुमा
तुमसे मिलने का यदि
ना हो कोई कारण
पूजा
भावों का नैवैध्य
तुम्हें चढ़ाये बिना
होती नहीं सम्पूर्ण .
पूजा
ReplyDeleteभावों का नैवैध्य
तुम्हें चढ़ाये बिना
होती नहीं सम्पूर्ण
भावों का नैवेध्य ..बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ है ..सुन्दर रचना
पगड्ण्डी पर चलते चलते
ReplyDeleteहवाओं के संगीत से
जब नींद सुबह खुलती है
तो पूजा ,अर्चना,आराधना
सब तुम ही तो होती हो
फिर कैसे तुम्हारे बिन
जीवन की पगड्ण्डी पर चलूँ?
मेरी तो हर आस
हर विश्वास
हर चाह
तुम्हारे वजूद से ही
सम्पूर्णता पाता है
फिर कैसे तुम्हारे बिन
जीवन की पगड्ण्डी पर चलूँ?
अब इससे ज्यादा क्या कहूं …………एक बेहद उम्दा प्रस्तुति दिल को छू गयी।
आपकी रचनाएं परिपक्व कवयित्री होने के संकेत दे रही हैं। अहा!! क्या उद्गार है
ReplyDeleteपूजा
भावों का नैवैध्य
तुम्हें चढ़ाये बिना
होती नहीं सम्पूर्ण .
आभार! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है
पूजा
ReplyDeleteभावों का नैवैध्य
तुम्हें चढ़ाये बिना
होती नहीं सम्पूर्ण .
samarpan se bhare bhaw
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ दिल को छू गयी।
ReplyDeleteA fine piece of writing . congratulations
ReplyDeleteAsha
पूजा
ReplyDeleteभावों का नैवैध्य
तुम्हें चढ़ाये बिना
होती नहीं सम्पूर्ण .
प्रेम प्रेम प्रेम ... बस प्रेम में ही संभव है ये .....
प्रेम को जिया है इस रचना में आपने ....
शब्द शब्द में अंकित समर्पण एवं प्रेम!
ReplyDeleteप्रेम और समर्पण का यह निश्छल उदगार...
ReplyDeleteकौन न मर मिटे इसपर !!!!
मन मोह गयी यह सुन्दर रचना....
आभार पढवाने के लिए..
पूजा
ReplyDeleteभावों का नैवैध्य
तुम्हें चढ़ाये बिना
होती नहीं सम्पूर्ण
गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.