Thursday, November 25, 2010

पगडण्डी

चित्र साभार गूगल 










पगडण्डी
जो तुम तक
नहीं पहुँचती
नहीं जाता मैं उस पर

हवाएं
जो नहीं लाती
तुम्हारी कुशल
नहीं सिहराती मुझे

संगीत
जिसमें तुम ना हो
मन के तारों को
नहीं करता झंकृत

नींद
तुम्हारे सपने ना हो
जिसमें आती नहीं
ना ही सुलाती मुझे

सुबह
नहीं होती खुशनुमा
तुमसे मिलने का यदि
ना हो कोई कारण

पूजा
भावों का नैवैध्य
तुम्हें चढ़ाये बिना
होती नहीं सम्पूर्ण .

10 comments:

  1. पूजा
    भावों का नैवैध्य
    तुम्हें चढ़ाये बिना
    होती नहीं सम्पूर्ण

    भावों का नैवेध्य ..बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ है ..सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. पगड्ण्डी पर चलते चलते
    हवाओं के संगीत से
    जब नींद सुबह खुलती है
    तो पूजा ,अर्चना,आराधना
    सब तुम ही तो होती हो
    फिर कैसे तुम्हारे बिन
    जीवन की पगड्ण्डी पर चलूँ?

    मेरी तो हर आस
    हर विश्वास
    हर चाह
    तुम्हारे वजूद से ही
    सम्पूर्णता पाता है
    फिर कैसे तुम्हारे बिन
    जीवन की पगड्ण्डी पर चलूँ?

    अब इससे ज्यादा क्या कहूं …………एक बेहद उम्दा प्रस्तुति दिल को छू गयी।

    ReplyDelete
  3. आपकी रचनाएं परिपक्व कवयित्री होने के संकेत दे रही हैं। अहा!! क्या उद्गार है
    पूजा
    भावों का नैवैध्य
    तुम्हें चढ़ाये बिना
    होती नहीं सम्पूर्ण .
    आभार! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    विचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है

    ReplyDelete
  4. पूजा
    भावों का नैवैध्य
    तुम्हें चढ़ाये बिना
    होती नहीं सम्पूर्ण .
    samarpan se bhare bhaw

    ReplyDelete
  5. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ दिल को छू गयी।

    ReplyDelete
  6. A fine piece of writing . congratulations
    Asha

    ReplyDelete
  7. पूजा
    भावों का नैवैध्य
    तुम्हें चढ़ाये बिना
    होती नहीं सम्पूर्ण .
    प्रेम प्रेम प्रेम ... बस प्रेम में ही संभव है ये .....
    प्रेम को जिया है इस रचना में आपने ....

    ReplyDelete
  8. शब्द शब्द में अंकित समर्पण एवं प्रेम!

    ReplyDelete
  9. प्रेम और समर्पण का यह निश्छल उदगार...

    कौन न मर मिटे इसपर !!!!

    मन मोह गयी यह सुन्दर रचना....

    आभार पढवाने के लिए..

    ReplyDelete
  10. पूजा
    भावों का नैवैध्य
    तुम्हें चढ़ाये बिना
    होती नहीं सम्पूर्ण

    गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

    ReplyDelete