Thursday, February 24, 2011

तुम्हारी चौखट



चित्र साभार गूगल   








साँसे थम जाती  हैं
आँखें बस तुम्हे देखती हैं
सूरज मद्दयम  हो जाता है
जब भी
सोचता हूँ
तुम्हारी चौखट के बारे में 

रख देना एक दीया
मिटटी का
डालकर उसमें
अपने नेह का तेल
कि भटक ना जाऊं मैं
जब आऊं तुम्हारी  चौखट पर


मेरी आहट पाकर
लगेंगे झूमने
वह वन्दनवार
जो बांधे थे मैंने
गृहप्रवेश के दिन
तुम्हारी चौखट पर


सामने देख मुझे
बोल उठेगा जरूर
वह तोते का जोड़ा
जिसे प्यार से
पुचकारा था मैंने
तुम्हारी चौखट पर.


सांकल मत लगाना कभी
मेरे लिए
अपनी  चौखट पर
रख देना एक पायदान
कि पोंछ  आऊं मैं
सभी द्वेष ह्रदय के
करने को प्रवेश तुम्हारे ह्रदय में

Tuesday, February 22, 2011

तिनका हूँ मैं


चित्र साभार गूगल 



तिनका हूँ मैं दुर्बल असहाय  
गौरैया का मन मुझ पर आया 
प्रिय  अधरों से लिया उठाय
उसने  सुंदर  एक नीड़ बनाया

तिनका हूँ मैं उपयोगी बन  
खग ठौर बना इतराया हूँ 
मुझमें जीता नन्हा जीवन 
देख उन्हें मैं मुस्काया हूँ  

तिनका हूँ मैं उड़ता आवारा  
मेरी न कोई बोली बाणी
डूबते का हूँ एक सहारा 
कीमत उसी ने है  जानी 

तिनका हूँ मैं दूब कमतर  
कोमल सा मखमली बिछौना  
तूफ़ान नवाए तना तरुवर 
मुझे लगता एक खिलौना 

तिनका हूँ मैं निरीह दिखूं  
मुझ पर ना कोई बंधन
पैर पखारूँ या  ह्रदय लगूं  
आलिंगन मेरा है अनुबंधन 

तिनका हूँ मैं न उपेक्षा भाए  
नजरों में नहीं बसा लेना 
अश्रु धार बहा ले जाए 
फिर से तुम कंठ लगा लेना 

तिनका हूँ मैं तुम गंध रजनी 
दिशाहीन बलहीन व्यथा मेरी  
मांग सजा लो तुम सजनी
पलाश बन महकूँ चाह मेरी  . 

Thursday, February 17, 2011

ऋतु वसंत




आया वसंत 
लाया उमंग 
हवा में घोला 
उसने भंग. 

मन हर्षित 
रोम पुलकित 
नैन अर्पित 
स्नेह अलौकिक .

बिखरा पराग 
अंग अंग 
अबीर बारात 
फैलाये सुगंध 

भ्रमर सुनाये 
गुनगुन गीत 
कलियाँ ओढ़े 
चूनर पीत 

तितली मुस्काए 
पुष्प आलिंगन 
पलकें  झुक जाए 
रंगों का बंधन 

फूली सरसों 
खेत मन भाया
धानी चूनर ओढ़ 
ऋतुराज  आया

दहके पलाश
भरकर रंग 
महुआ महके
आँगन हुडदंग 
 
अम्बर  झूमर
अमलताश लरजे 
मोहक इतना 
प्रेमपाश जैसे 
 
देहरी खड़ा 
रंगीला फाग
गूंजे ह्रदय 
राग अनुराग 

बसंत ऋतु आई 
रंग है बिखेरा 
रंग भरी तूलिका 
कुशल है चितेरा 

महके मंजरी 
आम्र बौराए 
गोरी ठिठकी 
वो मिलने आये..
 

Tuesday, February 15, 2011

वास्को-डि-गामा तुम मेरे





तुमने मुझे जाना 
पहचाना और
खोज लीं मुझमें 
संभावनाएं असीम 

आकर्षण से मेरे 
परिचय कराया 
मेरी कोमलता को 
तुमने सहलाया 

कराया एहसास 
जो छिपा था मुझमें 
उभारा तराशा 
जो कुंद था मुझमें 

बना दी राह 
सपनों को चलने की 
भर दी चुनौती  
गर्व से सिर उठाने की  

भावों को खंगाला 
शब्दों में ढाला
मन को टटोला 
निर्मल कर डाला 

तुमने ही ढूँढा 
सहृदयता को मेरी 
पुकारा सराहा 
निश्छलता को मेरी 

दिलाया भरोसा 
मैं  हूँ साथ तेरे 
बढाओ  कदम
कदम साथ मेरे 

पारखी हो कुशल 
जौहरी हो तुम 
मुझे  दिखाया दर्पण  
मेरे वास्को-डि-गामा हो तुम .

Sunday, February 13, 2011

मन का कोना





दूर देस की एक गुजरिया 
बैठी उदास  है मन मारे 
कब आयेंगे पिया डगरिया 
प्रेम नजरिया मुझ पर डारे 

बचपन गया लड़कपन आया 
अँखियाँ दोनों  रहीं अकुलानी
धीमी दस्तक दे वसंत आया 
मंद मलय ने उड़ा  दी वीरानी  

रिश्ते नाते छूट गए सब 
तुम्हारी चौखट से  बंध कर
चंचल मनवा छूटे कब 
तुम्हारे आँगन में बस कर  

चुप है कंगन की खनखन  
अंजन है अँखियाँ मूंदे 
बेबस पायल की रुनझुन
बरसाती है मोती बूँदें    

ठहर गया रथ सूरज का 
अवाक् हुई गौरैया है 
मलिन  हुआ मुख गोरी  का
चाँद भी थोडा मुरझाया है 

जीने का बस लक्ष्य एक
राह तुम्हारी  रही निहार
तुम्हें देख जीवन रस बरसे 
आहट पर मैं हुई निसार   

सुखों को बना के बौना  
तुम हो कितना इतराते 
रिक्त रहा मन का कोना 
तुम ही उसे भर पाते  

Friday, February 11, 2011

तुम अनुराग


चित्र  साभार  गूगल  


तुम घटा
बरखा भी  तुम
स्वयं के आसमान में 
उकेरा  रंगों का धनुष
तुम इन्द्रधनुष

तुम पुष्प
भ्रमर भी तुम
स्वयं के चंदनवन में
न्योता है मयूर  
तुम वसंत

तुम सूर्य
रश्मि भी तुम
स्वयं के प्रभात में
भर दिया है प्रकाश
तुम उजास

तुम चन्द्र
शीतल भी तुम
दूज  की शाम में
भर दिया है संगीत
तुम मनमीत

तुम नदी
धारा भी तुम
अपने ही बहाव में
निर्मल किया मन का कलुष
तुम मनुज 

तुम पर्वत
अडिग  तुम
स्वयं की दृढ़ता में
झुक गया है पाषाण
तुम प्राण

गंध  तुम
तुम पराग
स्वयं की समिधा से
प्रज्जवलित प्रेम की आग
तुम अनुराग 

Thursday, February 10, 2011

भूल जाओ










भूल जाओ तुम 
उन संकरी गलियों को 
जिनसे गुजरी थी तुम 
मेरे बिना 

भूल जाओ तुम 
उन मुश्किल  दिनों को 
जब करती थी तुम 
मेरा इन्तजार 

भूल जाओ तुम 
उस अँधेरी रात को 
साथी थी तुम्हारी 
सिर्फ हमारी यादें  

भूल जाओ तुम 
उस लम्हे को 
जब मैं गया  परदेस 
तुम्हें छोड़ 

भूल जाओ तुम 
उस दुखद पल को 
जब सबने फेर ली थी आँखें 
मेरे सिवाय 

भूल जाओ तुम 
उस डरावने स्वपन को 
जब छुड़ा लिया था मैंने 
अपना  हाथ 

मत भूलना कभी 
आज का सुनहरा दिन 
जब साथ हैं हम 
हाथों में डाले हाथ .

Monday, February 7, 2011

व्यूह्जाल




चक्रव्यूह में सपनों के 
बिलकुल मैं गई उलझ 
कितने द्वार इस जाल के 
आता मुझको नहीं समझ . 

हर मुहाने महारथी गहरा 
हैं चौकस हथियारबंद 
हर एक पर कड़ा पहरा 
रहो सुप्त मन ही में बंद 

सपने तो आखिर सपने हैं 
पंखों में भरा है वायुवेग 
हवा बहे जरा अनुकूल 
उड़ान भरेंगे ले आवेग .

कोई शिला दीवार कोई 
रोक इन्हें ना पाएगी 
सपनों की है राह बहुत 
संग बहा ले जायेगी . 

जाने किस मिटटी के बने 
मूर्छित  नहीं ये हो पाते                 
पीकर प्रीत की संजीवनी 
जीवित होकर उठ जाते             

एक सम्भालूँ दूजा बागी 
इन पर कैसे कसूँ डोर 
रेशम धागा कसा ना जाए 
ढीली गाँठ का खो जाए छोर 

द्वन्द बहुत है मन मेरे 
कैसे पार बसाऊँ मैं 
व्यूह्जाल हैं बड़ा विकट 
उलझ इसी में जाऊं मैं.

Wednesday, February 2, 2011

अनुपम प्रीत





सकुचाती बाहें कंठ लगा लूं
लजाती आँखें नयन बसा लूं

प्रिये तुम हो बहुत दुलारी
मन करता है स्वपन सवारी

निहार निहार जिया  नहीं भरता
पलक झपके मन नहीं करता

नख से शिख तक मोह भरा
स्नेह अनुराग और प्रेम खरा

मन जा पहुंचा तुम्हारी नगरिया    
देख लूं अपनी  सोन मछरिया

बीत गए सुंदर  पल छिन
जीवन से भरे अभिन्न

आने वाला कल खड़ा द्वार
सजा दो तोरण वन्दनवार

अनोखी अनुपम प्रीत हमारी
हर ले उदासी भर उजियारी

बिन देखे भी बैचैन नहीं
मिलकर भी है वियोग कहीं