दूर देस की एक गुजरिया
बैठी उदास है मन मारे
कब आयेंगे पिया डगरिया
प्रेम नजरिया मुझ पर डारे
बचपन गया लड़कपन आया
अँखियाँ दोनों रहीं अकुलानी
धीमी दस्तक दे वसंत आया
मंद मलय ने उड़ा दी वीरानी
रिश्ते नाते छूट गए सब
तुम्हारी चौखट से बंध कर
चंचल मनवा छूटे कब
तुम्हारे आँगन में बस कर
चुप है कंगन की खनखन
अंजन है अँखियाँ मूंदे
बेबस पायल की रुनझुन
बरसाती है मोती बूँदें
ठहर गया रथ सूरज का
अवाक् हुई गौरैया है
मलिन हुआ मुख गोरी का
चाँद भी थोडा मुरझाया है
जीने का बस लक्ष्य एक
राह तुम्हारी रही निहार
तुम्हें देख जीवन रस बरसे
आहट पर मैं हुई निसार
सुखों को बना के बौना
तुम हो कितना इतराते
रिक्त रहा मन का कोना
तुम ही उसे भर पाते
रिश्ते नाते छूट गए सब
ReplyDeleteतुम्हारी चौखट से बंध कर
चंचल मनवा छूटे कब
तुम्हारे आँगन में बस कर
waah... kitni achhi abhivyakti
बढ़िया कविता ! बेहद रोमांटिक
ReplyDeleteप्रेमपगी कविता।
ReplyDeletekiske udasi utari apne apni kavita mein
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति से सजी हुई बेहतरीन कविता। शुभकामनाए।
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteसलाम.
बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDelete"जीने का बस लक्ष्य एक
ReplyDeleteराह तुम्हारी रही निहार
तुम्हें देख जीवन रस बरसे
आहट पर मैं हुई निसार "...
कहाँ दीखता है अब ऐसा प्रेम... सुन्दर कविता .. सुन्दर भाव... शुभकामना !