तुमने मुझे जाना
पहचाना और
खोज लीं मुझमें
संभावनाएं असीम
आकर्षण से मेरे
परिचय कराया
मेरी कोमलता को
तुमने सहलाया
कराया एहसास
जो छिपा था मुझमें
उभारा तराशा
जो कुंद था मुझमें
बना दी राह
सपनों को चलने की
भर दी चुनौती
गर्व से सिर उठाने की
भावों को खंगाला
शब्दों में ढाला
मन को टटोला
निर्मल कर डाला
तुमने ही ढूँढा
सहृदयता को मेरी
पुकारा सराहा
निश्छलता को मेरी
दिलाया भरोसा
मैं हूँ साथ तेरे
बढाओ कदम
कदम साथ मेरे
पारखी हो कुशल
जौहरी हो तुम
मुझे दिखाया दर्पण
मेरे वास्को-डि-गामा हो तुम .
अभनव भावों से सजी हुई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!
basco-digama mere.....ho tum:)
ReplyDeletekya bimb talasha hai aapne..:!!
kya kahun...hats off!
पारखी हो कुशल
ReplyDeleteजौहरी हो तुम
मुझे दिखाया दर्पण
मेरे वास्को-डि-गामा हो तुम
-वाह! क्या बात है.
अलग सोच के साथ लिखी अनुपम कविता।
ReplyDeleteवाह, सशक्त। जो ढूढ़ ले वही स्वामी।
ReplyDeleteदिलाया भरोसा
ReplyDeleteमैं हूँ साथ तेरे
बढाओ कदम
कदम साथ मेरे
बहुत सुन्दर.
निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर बिम्ब.
ReplyDeleteसलाम
क्या शब्द चुना है ...वास्कोडिगामा हो तुम
ReplyDeleteकई बार जब तक कोई एहसास नहीं कराता हम अपनी खूबियों से वाकिफ नहीं होते , उनकी कीमत नहीं जानते ...
ऐसे मार्गदर्शक के लिए सही शब्द लिया है आपने !