सकुचाती बाहें कंठ लगा लूं
लजाती आँखें नयन बसा लूं
प्रिये तुम हो बहुत दुलारी
मन करता है स्वपन सवारी
निहार निहार जिया नहीं भरता
पलक झपके मन नहीं करता
नख से शिख तक मोह भरा
स्नेह अनुराग और प्रेम खरा
मन जा पहुंचा तुम्हारी नगरिया
देख लूं अपनी सोन मछरिया
बीत गए सुंदर पल छिन
जीवन से भरे अभिन्न
आने वाला कल खड़ा द्वार
सजा दो तोरण वन्दनवार
अनोखी अनुपम प्रीत हमारी
हर ले उदासी भर उजियारी
बिन देखे भी बैचैन नहीं
मिलकर भी है वियोग कहीं
अनोखी अनुपम प्रीत हमारी
ReplyDeleteहर ले उदासी भर उजियारी
bahut sunder...pyar ki aseem abhivyakti...
नख से शिख तक मोह भरा
ReplyDeleteस्नेह अनुराग और प्रेम खरा
adbhut prem samarpan bhaw
आने वाला कल खड़ा द्वार
ReplyDeleteसजा दो तोरण वन्दनवार
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प्रेम रस से सिक्त आशा का संचार करती सुन्दर रचना!
बिन देखे बेचैन नहीं
ReplyDeleteमिलकर भी वियोग कहीं ...
सुन्दर प्रेम और विरह गीत !
प्रेम और विरह का अदभुद समन्वय.. बढ़िया कविता !
ReplyDeleteसंयोग में वियोग, रोचक कल्पना।
ReplyDelete• आत्मचिंतन से उपजी मार्मिक कविता है।
ReplyDeleteअनोखी अनुपम प्रीत हमारी
ReplyDeleteहर ले उदासी भर उजियारी
हर दर्द की दवा है सच्चा प्रेम। बहुत सुन्दर कविता। बधाई।
आदरणीय रामपति जी आपकी तमाम कवितायेँ ब्लॉग पर पढ़ गया... और पाया कि जिस तरह अंग्रेजी के युवा कवि जाँ कीट्स केवल प्रेम और प्रकृति की कविता करते थे.. उसी तरह आपकी कविताओं में प्रेम के भाव सन्निहित हैं... वर्तमान कविता अनुपम प्रीत .. प्रीत से लबालब है... आज के मुश्किल समय के प्रेम के बात पिछली शताब्दी की तरह करना अच्छा है.. जैसे आप कि कविता में प्रेम और वियोग का सुन्दर सामंजस्य और समन्वय है मुझे कीट्स की एक कविता "Welcome joy, and welcome sorrow.... की याद आ रही है.. आपके लिए कुछ पंक्तियाँ...
ReplyDelete...."Lethe's weed and Hermes' feather;
Come to-day, and come to-morrow,
I do love you both together!
I love to mark sad faces in fair weather;
And hear a merry laugh amid the thunder;
Fair and foul I love together.
Meadows sweet where flames are under...."... अपनी कविता की आत्मा को बचाए रखें, यही कामना है..
बिन देखे भी बैचैन नहीं
ReplyDeleteमिलकर भी है वियोग कहीं
बहुत अच्छी रचना.प्रेम से सराबोर.
शुभ कामनाएं
सुन्दर प्रेम और विरह गीत !
ReplyDeleteकई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |