चित्र साभार गूगल |
तुम घटा
बरखा भी तुम
स्वयं के आसमान में
उकेरा रंगों का धनुष
तुम इन्द्रधनुष
तुम पुष्प
भ्रमर भी तुम
स्वयं के चंदनवन में
न्योता है मयूर
तुम वसंत
तुम सूर्य
रश्मि भी तुम
स्वयं के प्रभात में
भर दिया है प्रकाश
तुम उजास
तुम चन्द्र
शीतल भी तुम
दूज की शाम में
भर दिया है संगीत
तुम मनमीत
तुम नदी
धारा भी तुम
अपने ही बहाव में
निर्मल किया मन का कलुष
तुम मनुज
तुम पर्वत
अडिग तुम
स्वयं की दृढ़ता में
झुक गया है पाषाण
तुम प्राण
गंध तुम
तुम पराग
स्वयं की समिधा से
प्रज्जवलित प्रेम की आग
तुम अनुराग
गंध तुम
ReplyDeleteतुम पराग
स्वयं की समिधा से
प्रज्जवलित प्रेम की आग
तुम अनुराग
नमस्कार !
बेहद सुंदर पंक्तिया है ,
साधुवाद !
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteमेरा प्रज्वलित प्रेम भी तुम
और उसका अहसास भी तुम...
बहुत खूबसूरत बयानगी है...
--
behatar
ReplyDeleteतुम चन्द्र
ReplyDeleteशीतल भी तुम
दूज की शाम में
भर दिया है संगीत
तुम मनमीत
.....बेहद सुंदर पंक्तिया है
Beautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
बहुत सुन्दर प्रवाहमयी भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteप्रवाहपूर्ण शब्दनिर्झर।
ReplyDeletetum ghata, pusp, surya., chandra, nadi parvat...sab tumm....to fir kya kahne...:)
ReplyDeletebehad bhaavpurn rachna, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteगंध तुम
ReplyDeleteतुम पराग
स्वयं की समिधा से
प्रज्जवलित प्रेम की आग
तुम अनुराग ..
उन्मुक्त प्रेम की सहज अभिव्यक्ति ...सुन्दर रचना ..