Friday, February 11, 2011

तुम अनुराग


चित्र  साभार  गूगल  


तुम घटा
बरखा भी  तुम
स्वयं के आसमान में 
उकेरा  रंगों का धनुष
तुम इन्द्रधनुष

तुम पुष्प
भ्रमर भी तुम
स्वयं के चंदनवन में
न्योता है मयूर  
तुम वसंत

तुम सूर्य
रश्मि भी तुम
स्वयं के प्रभात में
भर दिया है प्रकाश
तुम उजास

तुम चन्द्र
शीतल भी तुम
दूज  की शाम में
भर दिया है संगीत
तुम मनमीत

तुम नदी
धारा भी तुम
अपने ही बहाव में
निर्मल किया मन का कलुष
तुम मनुज 

तुम पर्वत
अडिग  तुम
स्वयं की दृढ़ता में
झुक गया है पाषाण
तुम प्राण

गंध  तुम
तुम पराग
स्वयं की समिधा से
प्रज्जवलित प्रेम की आग
तुम अनुराग 

11 comments:

  1. गंध तुम
    तुम पराग
    स्वयं की समिधा से
    प्रज्जवलित प्रेम की आग
    तुम अनुराग
    नमस्कार !
    बेहद सुंदर पंक्तिया है ,
    साधुवाद !

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  2. सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  3. वाह...
    मेरा प्रज्वलित प्रेम भी तुम
    और उसका अहसास भी तुम...
    बहुत खूबसूरत बयानगी है...
    --

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  4. तुम चन्द्र
    शीतल भी तुम
    दूज की शाम में
    भर दिया है संगीत
    तुम मनमीत
    .....बेहद सुंदर पंक्तिया है

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  5. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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  6. बहुत सुन्दर प्रवाहमयी भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

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  7. प्रवाहपूर्ण शब्दनिर्झर।

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  8. tum ghata, pusp, surya., chandra, nadi parvat...sab tumm....to fir kya kahne...:)

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  9. गंध तुम
    तुम पराग
    स्वयं की समिधा से
    प्रज्जवलित प्रेम की आग
    तुम अनुराग ..

    उन्मुक्त प्रेम की सहज अभिव्यक्ति ...सुन्दर रचना ..

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