भूल जाओ तुम
उन संकरी गलियों को
जिनसे गुजरी थी तुम
मेरे बिना
भूल जाओ तुम
उन मुश्किल दिनों को
जब करती थी तुम
मेरा इन्तजार
भूल जाओ तुम
उस अँधेरी रात को
साथी थी तुम्हारी
सिर्फ हमारी यादें
भूल जाओ तुम
उस लम्हे को
जब मैं गया परदेस
तुम्हें छोड़
भूल जाओ तुम
उस दुखद पल को
जब सबने फेर ली थी आँखें
मेरे सिवाय
भूल जाओ तुम
उस डरावने स्वपन को
जब छुड़ा लिया था मैंने
अपना हाथ
मत भूलना कभी
आज का सुनहरा दिन
जब साथ हैं हम
हाथों में डाले हाथ .
aaj thori valentine hai...:)jo haath me haath dalna hai..:D..kidding
ReplyDeletebahut khub..:)
kabhi hamare blog pe bhi dastak dijiye...
भूल जाओ तुम
ReplyDeleteउस डरावने स्वपन को
जब छुड़ा लिया था मैंने
अपना हाथ
मत भूलना कभी
आज का सुनहरा दिन
जब साथ हैं हम
हाथों में डाले हाथ .
kyonki yahi sach hai hamare hone ka
मत भूलना कभी
ReplyDeleteआज का सुनहरा दिन
जब साथ हैं हम
हाथों में डाले हाथ .
kyonki yahi sach hai hamare hone ka
regards
भूल जाओ तुम
ReplyDeleteउस अँधेरी रात को
साथी थी तुम्हारी
सिर्फ हमारी यादें
-----
भूल जाओ तुम
उस दुखद पल को
जब सबने फेर ली थी आँखें
मेरे सिवाय
इन दोनों को फिर से देखिये..अन्य पंक्तियों के अर्थ के साथ साम्य बैठालने के लिए....
शायद..
साथ थी तुम्हारी (की जगह) साथ थी तुम्हारे..करके देखिये
और
जब सबने फेर ली थी आँखें
मेरे सिवाय
(के स्थान पर)
जब फेर ली थी आँखें
सबके साथ मैने
--मात्र सुझाव है भावों में साम्य उत्पन्न करने का. बाकी तो आप की रचना है, आप से बेहतर कौन समझ सकता है.
अनेक शुभकामनाएँ.
मत भूलना कभी
ReplyDeleteआज का सुनहरा दिन
जब साथ हैं हम
हाथों में डाले हाथ .
शुक्र है आखिरी मे हाथो मे हाथ है मगर शुरु से लग रहा था कि कहीं आखिर मे ये ना कह दे कि अब मुझे भी भूल जाओ…………बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।
@समीर लालजी
ReplyDeleteअच्छा सुझाव है . कविता इतने ध्यान से पढने के लिए बहुत धन्यवाद .
बहुत सुन्दर कविता है.. प्रेम पखवाड़े का असर दिख रहा है... अंतिम पंक्तियाँ गहरी हैं..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteमिलन का सुखद अहसास.
सलाम
बहुत सुन्दर कविता है,धन्यवाद
ReplyDelete…बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमत भूलना कभी
ReplyDeleteआज का सुनहरा दिन
जब साथ हैं हम
हाथों में डाले हाथ .
--
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!