Thursday, November 18, 2010

पनघट

चित्र गूगल से साभार













नाम लेते ही
पनघट
कल्पना में
सजीव हो उठता है
एक चित्र

एक कुआं
पानी खींचती एक नवयौवना
सुंदरियों का एक समूह
पानी का घट उठाये
इन्तजार में बैठी
एक गोरी

जल भरने से ज्यादा
बातें करने में व्यस्त
उनकी बातों में प्रेम और
प्रेम कहानियां
प्रिय की बातें करने का
सबसे सुरक्षित स्थान
एक झलक पाने
का स्थायी ठौर

उनकी गगरी से
छलकते जल
की खुशबू
से भरता रोमांच
पगडंडियों पर
थिरकते पावों
की रुनझुन
से उपजता संगीत

राधा की मटकी
कृष्ण के कंकड़
सोहनी की प्रतीक्षा
महिवाल की आकांक्षा
साक्षी जिनके
पनघट के घाट
कहाँ रहे वो ठाठ

आज नहीं हैं पनघट
नहीं प्रत्यक्ष हैं
पनिहारिने
लेकिन अब भी
जीवंत हैं
पनघट से जुडी
प्रेम कहानियां
कहीं न कहीं अंतस में .

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया,
    बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

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  2. बहुत तराशी हुई रचना है, आनंद आगया.

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  3. उत्तम रचना....बेहतरीन भावों से सजी लाजवाब पंक्तियाँ.

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  4. शब्द और भाव का अनूठा संगम है आपकी इस रचना में...वाह...बधाई स्वीकारें...

    नीरज

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  5. एक कुआं
    पानी खींचती एक नवयौवना
    सुंदरियों का एक समूह
    पानी का घट उठाये
    इन्तजार में बैठी
    एक गोरी
    bas waah ....... adwitiye rachna

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  6. बेहतरीन भावों से सजी. बेहतरीन प्रस्तुति

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