Monday, January 31, 2011

अंतर्मन



अंतर्मन  एक दीप जलाये 
बैठी हूँ मैं अपने ओसारे 
भूल कहाँ हुई मुझसे 
सूना रह गया मेरा सावन 

उनको देख देख दिन होता 
देख  उन्हें होती है शाम 
उनसे पूछ आता वसंत 
मूंह फेरे हो जाती पतझड़ 

वे ही मेरे राम श्याम 
मेरी गीता रामायण हैं 
रोम रोम में बसे सखा 
वे ही प्रभु हमारे हैं 

राह निहारूं शबरी सी 
अहिल्या बन रहूँ खड़ी
साजन की बैरागन सी 
थाल भावों का लिए खड़ी 

अंतर में बढ़ता तूफान 
साँसे डुबो ले जाएगा 
मिलने की आस महान
वही बचा ले जाएगा . 

क्या करूं कि उनका मन जीतूँ 
चाहत उनकी मैं पा जाऊं 
खुद को कैसे करूं निछावर 
चरणों में खुद ही बिछ जाऊं 

कब होगी मेरी दिवाली 
झकझोर रहा है अंतर्मन 
मन मेरा जो रहे प्रफुल्लित 
जूझ रहा है तपता मन 

हे चाँद सितारों आसमान 
कुछ तो मेरी करो मदद 
मेरे आँचल में रहो सिमट 
मनमीत मेरे हो जाएँ गदगद 

कब होगा वनवास ये पूरा 
थम जायेगी महाप्रलय 
घर लौटेंगे मेरे  प्रियवर
अपना  भी होगा महाप्रणय

Friday, January 28, 2011

मेरे भी भीतर






खुश होते हो तुम 
भर जाता है उजास 
मेरे भी भीतर 

चहचहाते हो तुम 
भर जाता है उल्लास 
मेरे भी भीतर 

चमकती है आँखें
हो जाती है दिवाली 
मेरे भी भीतर 

मुस्कुराते हो तुम
खिल उठती हैं कलियाँ 
मेरे भी भीतर 

गाते हो तुम 
भर जाता है संगीत 
मेरे भी भीतर 

सुन्दर सपने से तुम 
भर जाता है इन्द्रधनुष 
मेरे भी भीतर  

निकट आते हो तुम 
भर जाती है लाली 
मेरे भी भीतर 

उदास होते हो तुम 
हो जाती है अमावस 
मेरे भी भीतर  .

Sunday, January 23, 2011

शब्दों से नाता







तुम कविता जैसी सुंदर
सुंदर शब्द  तुम्हारे हैं 
शब्दों में जो भाव बसे 
वे ही प्राण हमारे हैं . 

इन प्राणों से मत छीनो 
प्राणवायु बसती जितनी 
मधुर प्रेम से इनको सींचों  
जी जाए सदियाँ कितनी 

एक उलाहना सूक्ष्म सा 
कर देता वीरान इन्हें 
जो पल बीते उपेक्षित सा 
कर देता निष्प्राण इन्हें 

बसते थे जो पलकों  में 
क्यों नजरों से दिया उतार
सजा नहीं सहज क्षमा में 
हैं इसके ही ये हक़दार.

इतराते कल मेरा होगा  
हों जैसे हर्ष पतवार 
इनके बिना ना सूरज होगा 
चाँद करेगा नहीं  इंकार 

दिन सोना चाँदी सी रातें 
मैं भी उसमें प्रत्यक्ष रहूँ 
चमक चांदनी करती बातें
सुंदर सुखमय कासे कहूं 

शब्दों  से नाता गहरा
अर्थ बसाये रहते हैं 
कहते सब वाणी पहरा 
मुस्कान बिछाए रहते हैं . 

Thursday, January 20, 2011

अभय बसेरा





नहीं खाली हाथ तुम

नहीं लौटे बैरंग

हथेलियों में सपने

भरने है जिनमें रंग



पगडण्डी जो दी तुमने

ले जाती परियों के देस

मौन प्रेम लगा बसने

रख कर ईश्वर का भेस



ताना बाना बुनते सपने

होंगे पूरे आशा मन में

स्वप्नों को देख देख हमने

सरस जीवन जिया पल में



तुम ही उसका संबल हो

जो तुमने उम्मीद जगाई

तुमको देख देख बल हो

तुमसे उसने पूर्णता पाई



उमंगों का बड़ा भार लिए

हवाएं जो तुमसे आती

मत घबराना धैर्य लिए

तुम्हारा एक संदेशा लाती



इच्छाओं के बो दो बीज

ऋतु वसंत आने को है

अंकुर आयें फूलों की तीज

संगीत धरा गाने को हैं



छंट जायेंगे घन दुःख के

एक नवीन सवेरा होगा

सूरज आयेंगे सुख के

प्रेम का अभय बसेरा होगा .

Monday, January 17, 2011

पाजेब


आँखों ही में गुजरी रात 
स्याह अँधेरी और गहन 
सूरज से कर मीठी बात  
आओ रश्मि पाजेब पहन 

प्रतीक्षा में रहूँ तुम्हारे 
करता चिंतन और मनन 
आ भी जाओ पास हमारे 
मीठे सुर की पाजेब पहन  

सर्र सर्र करती बहे हवा 
संताप बढाती मेरे मन 
बन आ जाओ मधुर दवा
पत्तों की पाजेब पहन 

रंग बिरंगे खिले फूल 
भ्रमर वृन्द करता गुनगुन 
खिली शाख पर आओ झूल 
पाजेब कली बाजे  झुनझुन

रिमझिम रिमझिम सी बूँदें 
शीतलता निर्मल करे वहन 
लहराती आओ आँखें मूंदे 
गंगाजल की पाजेब पहन 

घटता बढ़ता चन्द्र सुदर्शन 
प्रेम जगाता विरह दहन 
आ जाओ लेकर आकर्षण 
चंदनिया की पाजेब पहन 

सातों सुर बजने को आतुर  
एकतारे का टूटा तार 
आ  जाओ  होकर प्रीतातुर 
पहना पाजेब करूँ मनुहार .  

Friday, January 14, 2011

मेरी अर्चना
















अधूरी रही पूजा   
अधूरा  रहा अर्पण
नहीं जो आये तुम 
अधूरा ही  समर्पण 
 
वन्दना  आधी रही
मंद  मंत्र वाणी हुई   
समिधा संकोची रही 
आहुति न पूरी हुई  
 
ध्यान पूजा में न था 
आँखें लगी थी द्वार पर
कान सुनने को थे आहट
खुशबू तुम्हारी अपने घर . 
 
भगवान से मैं मांग लू
अक्षत  अभय तेरे लिए 
अमरफल मैं चाह लूं 
रखूँ  छिपा तेरे लिए 
 
तुम जो न आये तो क्या 
ईश्वर मेरा सम्मुख रहा 
देख उसमें छवि तेरी   
मैं तो मंत्रमुग्ध रहा . 
 
कैसे कहूं पूजा अधूरी 
हृदय  बिठलाया तुम्हें 
नैनो के  नीर का तर्पण 
अमृत से नहलाया तुम्हें . 
 
नेत्र ज्योति से तिलक 
अभिसार भाव पुष्प से 
स्वयं को किया अर्पण 
अभिनन्दन रोम रोम से . 
 
बंद थे दोनों नयन  
इष्ट  का सुमिरन किए 
तुम भी तो  थे दाहिने 
हाथों में हाथ दिए. 
 
आधी नहीं आराधना  
परिपूर्ण पूजा है मेरी 
समर्पित है साधना 
अर्चना अद्वितीय  मेरी . 

Tuesday, January 11, 2011

दे दो मुझे पंख

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अद्वितीय असीमित अम्बर पर   
निर्भय हस्ताक्षर कर आऊं    
दे दो मुझे यदि पंख     
सूर्य की गर्मी ले आऊं           

चाँद निकलता है छिप छिप     
रातों में बढ़ता दबे पाँव     
दे दो मुझे यदि पंख      
बिखरा दूं चांदनी गाँव गाँव     

गोधुलि में मिलते दोनों     
आकर सूरज धरती पर     
दे दो मुझे यदि पंख     
क्षितिज सजा दूं माथे पर     

रिमझिम झरती पावस बूँदें     
तपिश धरा की है हरती     
दे दो मुझे यदि पंख      
बदरी टोली घट भरती       

भय से सहमे सभी चेहरे      
आंसू की उफनती नदी सुखा दें     
दे दो मुझे यदि पंख      
हर मुख पर मुस्कान सजा दें       

शांत समंदर गहराता      
कहता मैं बहुत विशाल      
दे दो मुझे यदि पंख       
गागर मैं भर लूं  डोरी डाल      

साजन की आँखें करती        
हर पल मेरा इन्तजार     
दे दो मुझे यदि पंख     
उड़ कर आऊं बांह पसार .      

Sunday, January 9, 2011

अविरल उपहार


 









लिपटा सूरज कोहरे में
धूप खड़ी है सिरहाने
दोनों मगन एक दूजे में
छलक रहे हैं पैमाने 
  
बहे हवा कुछ बौराई
आँचल को ले जाए उड़ा 
बीत ना जाए तरुणाई
चंचल मन सोचे ठगा खड़ा  
 
 एक बार जो छू लूं उनको
ताप मेरा शीतल हो जाए
जी भर देखूं जो इनको
ह्रदय हिलोर पार पा जाए  
 
 बैठो तुम नजदीक मेरे
नजरों से नजर उतारूं मैं
कभी ना निकले आंसू तेरे
पलकों पर मोती वारूँ मैं 

 दिन रात बसे हो मन में
सांसों में समाये रहते हो
चमक बसी है नयनों में
दिल में धड़कते रहते हो  

मोहक सी मुस्कान सजाये 
अपलक होकर खड़े रहो  
धूमिल मलिन ना होने पाए
इसकी ही उलझन में रहो

अविरल सा उपहार ले आऊं
समझ नहीं कुछ आता है
कुछ  तुमसे प्यारा ना पाऊं
तुमसे  ना बेहतर पाता हूँ  .

Thursday, January 6, 2011

मेरे प्राण





हाथ में मेरे
होते जो प्राण
कर देता तुम्हे
समर्पित मेरे प्राण

वश में मेरे
होता जो सूरज
कर देता तुम्हें
सिन्दूरी मेरे प्राण

इशारे पर मेरे
चलता जो चंदा
कर देता चूनर
चन्देरी मेरे प्राण

कहने से मेरे
बहती जो बयार
सुनहरी अलकें
झुलाती मेरे प्राण

चाहने से मेरे
कूकती जो कोयल
मीठा एक प्रेमगीत
गाती मेरे प्राण

आने से मेरे
खिलती जो कलियाँ
अर्पण कर देता
गुलशन मेरे प्राण

हंसने से मेरे
घटती  जो उदासी
अमर कर देता
मुस्कान मेरे प्राण

शब्दों से मेरे
छंटते  जो बादल
चरणों में रख देता
अम्बर मेरे प्राण

चुप होने से मेरे
होती  जो रात
सिरहाने रख देता
रश्मि उपहार मेरे प्राण

चाहत से मेरी
परिचित जो पपीहा
करता उमर भर
इन्तजार मेरे प्राण .

Wednesday, January 5, 2011

अरण्य






एक मोरनी  और एक मोर  
विचर रहे थे वन ही वन  
कहाँ बनायें अपनी ठौर
सोच रहे थे मन ही मन . 

घुप  घनेरा वन  अनमोल   
हरीतिमा  की है अति वृष्टि 
खग वृन्द करता किलोल 
फूट रही है नव सृष्टि . 


कलकल नदिया बहे अकेले
जल निर्मल दर्पण जैसा
निर्झर गाये गीत अलबेले
जंगल में यह  मंगल कैसा  .

पत्र पुष्प नदिया पहाड़
रचयिता के हैं अलंकार
कुलांचे भरता स्वर्ण मृग
धीमे  बहती मृदुल बयार .


शांत सरोवर सूना तट
छन छन रश्मि आती है
लपेटे स्वर्णिम उज्जवल पट
दिन का संदेशा लाती है 


एक छोर से दूजा छोर 
अपना बस  संसार यही
निर्भय अक्षय है सब ओर 
है रमणी की  चाह यही


आओ प्रिय बढाओ हाथ
कर लें निर्मित प्रेम कुटी
क्षितिज यहाँ रुके सुस्ताये  
अरण्य में जैसे सुर्ख बहूटी .  

Monday, January 3, 2011

तुम जीवन

Blue butterfly on a Lupine (www.epa.gov)

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
व्यंजना वय की करती       
परिभाषित है तुमसे यौवन    
व्याख्या  भावों की करती  
मार्ग दिखाती तुम जीवन .  

तुमसे उर  में है स्पंदन    
स्पंदन में हैं  प्राण बसे         
सिसके मध्य प्रीत क्रन्दन    
किससे कोई कैसे कहे .    

श्रद्धा उपजे अनुराग मेरा  
पूजा में जीवन करूँ बसर  
ईश्वर संग आसन तेरा  
अर्पण में ना कोई कसर .  

मुस्कान तुम्हारी तारे गूंथे    
बंद पलक चंदा शीतल      
निर्मल हंसी ओस सी बूँदें    
कुंदन करती कांसा पीतल .    

मन ने मन को है देखा     
बिन कहे समझ  जाती है  
दुःख की हल्की सी रेखा  
उनसे जाकर बतलाती है .    

परत उदासी या हर्ष अपार    
छिपा ना कुछ रह पाता है    
पारदर्शी हैं मन बारम्बार    
एक दूजे का हाल बताता है .    

कैसे जाऊं मैं अन्य  राह    
तुममे बसी आत्मा मेरी    
मन प्राण मेरा भरे आह    
जीवन मेरा प्रीत तुम्हारी .