अद्वितीय असीमित अम्बर पर
निर्भय हस्ताक्षर कर आऊं
दे दो मुझे यदि पंख
सूर्य की गर्मी ले आऊं
चाँद निकलता है छिप छिप
रातों में बढ़ता दबे पाँव
दे दो मुझे यदि पंख
बिखरा दूं चांदनी गाँव गाँव
गोधुलि में मिलते दोनों
आकर सूरज धरती पर
दे दो मुझे यदि पंख
क्षितिज सजा दूं माथे पर
रिमझिम झरती पावस बूँदें
तपिश धरा की है हरती
दे दो मुझे यदि पंख
बदरी टोली घट भरती
भय से सहमे सभी चेहरे
आंसू की उफनती नदी सुखा दें
दे दो मुझे यदि पंख
हर मुख पर मुस्कान सजा दें
शांत समंदर गहराता
कहता मैं बहुत विशाल
दे दो मुझे यदि पंख
गागर मैं भर लूं डोरी डाल
साजन की आँखें करती
हर पल मेरा इन्तजार
दे दो मुझे यदि पंख
उड़ कर आऊं बांह पसार .
इस अद्भुत रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteनीरज
आत्मविश्वास की प्रतिमूर्ति बने ये शब्द।
ReplyDeleteअद्वितीय असीमित अम्बर पर
ReplyDeleteनिर्भय हस्ताक्षर कर आऊं
दे दो मुझे यदि पंख
hamne de diya aapko pankh
aap aise hi sabdo sajate rahen
aur man ke vistar ko aise hi failayen...:)
दे दो मुझे यदि पंख
ReplyDeleteसूर्य की गर्मी ले आऊं
बहुत खूब ...प्रेरक विचारमाला ...।
गोधुलि में मिलते दोनों
ReplyDeleteआकर सूरज धरती पर
दे दो मुझे यदि पंख
क्षितिज सजा दूं माथे पर
bahut hi achhi rachna
रचना की अभिव्यक्ति ने काफ़ी प्रभावित किया। लय और प्रवाह से कविता आकर्षित करती है।
ReplyDeleteदे दो मुझे यदि पंख
ReplyDeleteक्षितिज सजा दूं माथे पर ..
सुद्नर पंक्तियाँ
पंख होते तो उड़ आती रे ...जैसे ही भाव
पंख होते तो क्या क्या नहीं किया जा सकता था ...!
दे दो मुझे यदि पंख
ReplyDeleteबहुत खूब, लाजबाब !
अद्वितीय असीमित अम्बर पर
ReplyDeleteनिर्भय हस्ताक्षर कर आऊं
दे दो मुझे यदि पंख
सूर्य की गर्मी ले आऊं
बहुत सुन्दर कविता है. बधाई.
गोधुलि में मिलते दोनों
ReplyDeleteआकर सूरज धरती पर
दे दो मुझे यदि पंख
क्षितिज सजा दूं माथे पर ...
बहुत मधुर शब्दों में इस गौधूलि की वेला को बाँधा है ....