तुम कविता जैसी सुंदर
सुंदर शब्द तुम्हारे हैं
शब्दों में जो भाव बसे
वे ही प्राण हमारे हैं .
इन प्राणों से मत छीनो
प्राणवायु बसती जितनी
मधुर प्रेम से इनको सींचों
जी जाए सदियाँ कितनी
एक उलाहना सूक्ष्म सा
कर देता वीरान इन्हें
जो पल बीते उपेक्षित सा
कर देता निष्प्राण इन्हें
बसते थे जो पलकों में
क्यों नजरों से दिया उतार
सजा नहीं सहज क्षमा में
हैं इसके ही ये हक़दार.
इतराते कल मेरा होगा
हों जैसे हर्ष पतवार
इनके बिना ना सूरज होगा
चाँद करेगा नहीं इंकार
दिन सोना चाँदी सी रातें
मैं भी उसमें प्रत्यक्ष रहूँ
मैं भी उसमें प्रत्यक्ष रहूँ
चमक चांदनी करती बातें
सुंदर सुखमय कासे कहूं
सुंदर सुखमय कासे कहूं
शब्दों से नाता गहरा
अर्थ बसाये रहते हैं
कहते सब वाणी पहरा
मुस्कान बिछाए रहते हैं .
हमेशा की तरह बेहतरीन काव्यात्मक प्रस्तुति. सुन्दर शब्द संयोजन.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लयबद्ध प्रस्तुति।
ReplyDeletebahut sundar bhaavmaye prastuti, shubhkaamnaayen.
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ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteएक उलाहना सूक्ष्म सा
ReplyDeleteकर देता वीरान इन्हें
जो पल बीते उपेक्षित सा
कर देता निष्प्राण इन्हें... prashansniye
sunder kavyatmak prastuti...
ReplyDelete"एक उलाहना सूक्ष्म सा
ReplyDeleteकर देता वीरान इन्हें
जो पल बीते उपेक्षित सा
कर देता निष्प्राण इन्हें "... रामपति जी आपकी यह कविता मुझे रोमांटिक युग की याद दिला रही है... आपका शब्द सौंदर्य अद्भुद है... कीट्स की कुछ पंक्तिया आपके और आपकी कविता के लिए...
"Ah! woe is me! poor silver-wing!
That I must chant thy lady's dirge,
And death to this fair haunt of spring,
Of melody, and streams of flowery verge,--
Poor silver-wing! ah! woe is me!".... ये पंक्तियाँ कीट्स की प्रसिद्द कविता फेयरी सांग्स से ली गईं हैं...