Sunday, January 9, 2011

अविरल उपहार


 









लिपटा सूरज कोहरे में
धूप खड़ी है सिरहाने
दोनों मगन एक दूजे में
छलक रहे हैं पैमाने 
  
बहे हवा कुछ बौराई
आँचल को ले जाए उड़ा 
बीत ना जाए तरुणाई
चंचल मन सोचे ठगा खड़ा  
 
 एक बार जो छू लूं उनको
ताप मेरा शीतल हो जाए
जी भर देखूं जो इनको
ह्रदय हिलोर पार पा जाए  
 
 बैठो तुम नजदीक मेरे
नजरों से नजर उतारूं मैं
कभी ना निकले आंसू तेरे
पलकों पर मोती वारूँ मैं 

 दिन रात बसे हो मन में
सांसों में समाये रहते हो
चमक बसी है नयनों में
दिल में धड़कते रहते हो  

मोहक सी मुस्कान सजाये 
अपलक होकर खड़े रहो  
धूमिल मलिन ना होने पाए
इसकी ही उलझन में रहो

अविरल सा उपहार ले आऊं
समझ नहीं कुछ आता है
कुछ  तुमसे प्यारा ना पाऊं
तुमसे  ना बेहतर पाता हूँ  .

11 comments:

  1. बैठो तुम नजदीक मेरे
    नजरों से नजर उतारूं मैं
    कभी ना निकले आंसू तेरे
    पलकों पर मोती वारूँ मैं

    itna pyar chhalakta post........achchha laga...:)

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  2. सुंदर.अभिराम.उम्दा.

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  3. मोहक सी मुस्कान सजाये
    अपलक होकर खड़े रहो
    धूमिल मलिन ना होने पाए
    इसकी ही उलझन में रहो

    गहन अभिव्यक्ति।

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  4. एक बार जो छू लूं उनको
    ताप मेरा शीतल हो जाए
    जी भर देखूं जो इनको
    ह्रदय हिलोर पार पा जाए
    Prem ki gahri anubhooti ...

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  5. क्या बात है! बहुत ही प्रवाहपूर्ण कविता। इसकी आत्माभिव्यक्ति मुखर है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    कविता - इन दिनों ..

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  6. "मोहक सी मुस्कान सजाये
    अपलक होकर खड़े रहो
    धूमिल मलिन ना होने पाए
    इसकी ही उलझन में रहो."...
    प्रेम की सबसे अनुपम मुद्रा होती है यह.. सुन्दर कविता...

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  7. बेहतरीन शब्दों और भावों से सजाया है कविता को

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  8. बहुत ही प्रवाहपूर्ण कविता।
    दिन रात बसे हो मन में
    सांसों में समाये रहते हो
    चमक बसी है नयनों में
    दिल में धड़कते रहते हो

    वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया इस चित्र ने तो !

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  9. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द इस रचना के ।

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  10. "बैठो तुम नजदीक मेरे
    नजरों से नजर उतारूं मैं
    कभी ना निकले आंसू तेरे
    पलकों पर मोती वारूँ मैं"

    लाजवाब

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