Thursday, January 6, 2011

मेरे प्राण





हाथ में मेरे
होते जो प्राण
कर देता तुम्हे
समर्पित मेरे प्राण

वश में मेरे
होता जो सूरज
कर देता तुम्हें
सिन्दूरी मेरे प्राण

इशारे पर मेरे
चलता जो चंदा
कर देता चूनर
चन्देरी मेरे प्राण

कहने से मेरे
बहती जो बयार
सुनहरी अलकें
झुलाती मेरे प्राण

चाहने से मेरे
कूकती जो कोयल
मीठा एक प्रेमगीत
गाती मेरे प्राण

आने से मेरे
खिलती जो कलियाँ
अर्पण कर देता
गुलशन मेरे प्राण

हंसने से मेरे
घटती  जो उदासी
अमर कर देता
मुस्कान मेरे प्राण

शब्दों से मेरे
छंटते  जो बादल
चरणों में रख देता
अम्बर मेरे प्राण

चुप होने से मेरे
होती  जो रात
सिरहाने रख देता
रश्मि उपहार मेरे प्राण

चाहत से मेरी
परिचित जो पपीहा
करता उमर भर
इन्तजार मेरे प्राण .

7 comments:

  1. yani sab kuchh arpit karne ka vichar hai..:)

    bahut khubshurat sabdo ko peeroya hai aapne...:)

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  2. चुप होने से मेरे
    होती जो रात
    सिरहाने रख देता
    रश्मि उपहार मेरे प्राण
    सुन्दर बिम्बों वाली बहुत प्रभावशाली कविता है।

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  3. वाह...क्या बात कह दी !!!

    मन में उतर गयी रचना...

    मर्मस्पर्शी बहुत बहुत सुन्दर रचना...

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  4. कोमल भाव उकेरती रचना।

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  5. ..."चुप होने से मेरे
    होती जो रात
    सिरहाने रख देता
    रश्मि उपहार मेरे प्राण"
    ...प्रेम में इतना समर्पण, रश्मियों का उपहार.. कहीं प्राण के प्राण ही ना निकल जाये ... सुन्दर कविता...

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  6. आने से मेरे
    खिलती जो कलियाँ
    अर्पण कर देता
    गुलशन मेरे प्राण...

    सुन्दर कविता !!

    .

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