Friday, January 14, 2011
मेरी अर्चना
अधूरी रही पूजा
अधूरा रहा अर्पण
नहीं जो आये तुम
अधूरा ही समर्पण
वन्दना आधी रही
मंद मंत्र वाणी हुई
समिधा संकोची रही
आहुति न पूरी हुई
ध्यान पूजा में न था
आँखें लगी थी द्वार पर
कान सुनने को थे आहट
खुशबू तुम्हारी अपने घर .
भगवान से मैं मांग लू
अक्षत अभय तेरे लिए
अमरफल मैं चाह लूं
रखूँ छिपा तेरे लिए
तुम जो न आये तो क्या
ईश्वर मेरा सम्मुख रहा
देख उसमें छवि तेरी
मैं तो मंत्रमुग्ध रहा .
कैसे कहूं पूजा अधूरी
हृदय बिठलाया तुम्हें
नैनो के नीर का तर्पण
अमृत से नहलाया तुम्हें .
नेत्र ज्योति से तिलक
अभिसार भाव पुष्प से
स्वयं को किया अर्पण
अभिनन्दन रोम रोम से .
बंद थे दोनों नयन
इष्ट का सुमिरन किए
तुम भी तो थे दाहिने
हाथों में हाथ दिए.
आधी नहीं आराधना
परिपूर्ण पूजा है मेरी
समर्पित है साधना
अर्चना अद्वितीय मेरी .
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आधी नहीं आराधना
ReplyDeleteपरिपूर्ण पूजा है मेरी
समर्पित है साधना
अर्चना अद्वितीय मेरी .
itna pyara sa samarpan...
bahut khub....bahut pyare shabd...
आपके शब्द चयन व शिल्प ने स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन जी की 'रात आधी, खींच कर मेरी हथेली, एक अंगुली से लिखा था प्यार तुमने' की याद दिला दी।
ReplyDeleteखूबसूरत मनोभाव।
आधी नहीं आराधना
ReplyDeleteपरिपूर्ण पूजा है मेरी
समर्पित है साधना
अर्चना अद्वितीय मेरी .
बहुत ही सुन्दर सहज शब्दों में भावमय प्रस्तुति ।
आभार
ReplyDeleteभगवान से मैं मांग लू
ReplyDeleteअक्षत अभय तेरे लिए
अमरफल मैं चाह लूं
रखूँ छिपा तेरे लिए
pyaar kee archna ati sundar
तिलकराज कपूर जी से सहमत होते हुए, हरिवंश राय 'बच्चन' जी की 'प्रणय पत्रिका' से कुछ कंश प्रस्तुत करता हूँ, जो आपकी कविता के उच्च कोटि के होने को सिद्ध करता है...
ReplyDelete"नयन तुम्हारे-चरण कमल में अर्ध्य चढ़ा फिर-फिर भर आते।
कब प्रसन्न, अवसन्न हुए कब,
है कोई जिसने यह जाना?
नहीं तुम्हारी मुख मुद्रा ने
सीखा इसका भेद बताना,
ज्ञात मुझे, पर, अब तक मेरी
पूर्ण नहीं पूजा हो पाई "
अर्ध से पूर्ण का यात्रा, पूर्ण का अर्ध आचमन।
ReplyDelete• इस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सहज शब्दों में भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDeletepooja bhav se hoti hai...aur vo bhav har mantra ya pooja vidhi ke adhure hone me bhi poornata ke sath moujood tha..bahut sunder....
ReplyDeleteसमर्पण का बेहतरीन नमूना है आपकी यह रचना
ReplyDeleteआधी नहीं आराधना
ReplyDeleteपरिपूर्ण पूजा है मेरी
समर्पित है साधना
अर्चना अद्वितीय मेरी
अच्छी अभिव्यक्ति.सराहनीय प्रस्तुति. सच अद्वितीय है आपकी ये अर्चना.
आदरणीय रामपति जी
ReplyDeleteकवि शिरोमणि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का एक काव्य संग्रह है 'अर्चना'... यह संग्रह तब आयी थी जब छायावाद युग अपने चरम पर था... आप शायद पढ़ी हो इसे.. नहीं पढ़ी हैं तो अवश्य पढ़िए.. आपकी इस कविता को पढ़ मुझे उस काव्य संग्रह में शामिल कई कवितायें याद आ गई... एक कविता कि कुछ पंक्तिया आपके इस सुन्दर कविता के प्रति पेश करता हूँ...
"रमण मन के, मान के तन!
तुम्हीं जग के जीव-जीवन!
तुम्हीं में है महामाया,
जुड़ी छुटकर विश्वकाया;
कल्पतरु की कनक-छाया
तुम्हारे आनन्द-कानन।"
आपकी और इस कविता में समर्पण का भाव अपने पंचम पर है.. शुभकामना सहित..
तमन्ना कभी पूरी नही होती.....संजय भास्कर
ReplyDeleteनई पोस्ट पर आपका स्वागत है
धन्यवाद
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2011/01/blog-post_17.html