Tuesday, November 30, 2010

जुगनू




चमकता है एक तारा
अँधेरी घनेरी रातों में
चमकीला सा सितारा
कर लूं बंद मुट्ठी में

आशाओं की पहली बही
आस का उड़ता सा घन
जिंदगी थोड़ी छोटी सही
देता प्रकाश पुंज बन

जुगनू मिलेगा हर जगह
चाहो तो चूनर सजा लो
चाँद सूरज की तरह
प्रिय आँखों में बसा लो

राह हो चाहे बड़ी विकट
संचारित करता है सन्देश
गहन निशा का अंत निकट
कहता है धरे प्रिय भेस

सदा चमकती रहे तुम्हारी
मन की बगिया मुझ जैसी
अस्त ना हो प्रीत तुम्हारी
रहे पल्लवित तुम जैसी

जुगनू बन मैं आ जाऊं
भाल तुम्हारे रहूँ जगमग
समीप बना जो रह पाऊं
बिछ जाऊं प्रिया के पग पग

8 comments:

  1. sahi kaha apne jugnu or tare mein koi antar nahi hai, jugnu bhi pyare lagte hai or tare bhi

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  2. कविता के भाव बहुत खूबसूरत हैं
    सुन्दर रचना.

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  3. वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब

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  4. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  5. कैसे लिखा होगा अपने ये सब...आपका शब्द कौशल कमाल का है...एक बिलकुल अलग ढंग से सब कुछ देखने का ये हुनर बहुत पसंद आया...बधाई स्वीकार करें

    नीरज

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  6. राह हो चाहे बड़ी विकट
    संचारित करता है सन्देश
    गहन निशा का अंत निकट
    कहता है धरे प्रिय भेस...

    यही आशावादिता बहुत प्रभावित करती है ...
    शब्दों का चयन अत्युत्तम है !

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  7. निर्मला कपिलाजी ने मेल से कहा:

    सदा चमकती रहे तुम्हारी

    मन की बगिया मुझ जैसी

    अस्त ना हो प्रीत तुम्हारी

    रहे पल्लवित तुम जैसी


    बहुत ही सुन्दर भावमय प्रेमाभिव्यक्ति। बधाई इस सुन्दर रचना के लिये।

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  8. सदा चमकती रहे तुम्हारी
    मन की बगिया मुझ जैसी
    अस्त ना हो प्रीत तुम्हारी
    रहे पल्लवित तुम जैसी ..

    बहुत मधुर आशा है ... सुन्दर शदों से सजाया है इस रचना को ... लाजवाब ...

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