Wednesday, July 28, 2010

तुम नहीं तो कुछ नहीं


पानी है
आग है
धरा है
मिटटी है
वायु है
है तो है...
तुम नहीं तो कुछ भी अक्षत नहीं ।

फूल हैं
भौंरे हैं
पहाड़ हैं
झरने हैं
नदी है
सागर है
है तो है
तुम नहीं तो कुछ भी अच्छा नहीं ।

चाँद है
तारे हैं
सूरज है
आकाश गंगाएं हैं
ग्रह हैं
नक्षत्र हैं
है तो हैं
तुम नहीं तो कुछ भी फलित नहीं ।

साँसे हैं
सपने हैं
धड़कन है
खुशबू है
मिन्नत है
दुआएं हैं
हैं तो हैं
तुम नहीं तो कुछ भी अपना नहीं ।


Tuesday, July 27, 2010

क्षितिज

पृथ्वी तुम
मैं आकाश
जितने दूर
उतने पास ।

तुम देखो
उठाकर पलक
मैं देखूं
तुम्हें अपलक ।

तुम हो एक
निर्मल गजल
मुझमें है
वायु सजल ।

नीलकमल तुम
खुशबू मैं
मुझमें तुम
महकूँ मैं ।

तुम सूर्य
मैं नई भोर
तुम चंदा
मैं शीतल डोर ।

उर्जा तुम
ऊष्मा मैं
ह्रदय तुम
स्पंदन मैं ।

मिलन होगा
सुखद सपने
क्षितिज होगा
प्रेमपाश में अपने






Thursday, July 22, 2010

जीतेगी अपनी प्रीत

आकाश
अंजुरी में तेरे
है आँखों में
चाँद
ख़ामोशी मत
ओढो इतना
कि जीवन हो
जाए सांझ

नहीं भाव ने
छला तुम्हें
तिरोहित नहीं
हुआ सम्मान
करना था
जीवन अर्पण
और
सर्वस्व समर्पण

क्रन्दन नहीं
प्रारब्ध तेरा
नहीं रुदन
तेरी नियति
करो विश्वास
मेरा प्रिये
जीतेगी
अपनी अमर प्रीत

Monday, July 19, 2010

कौन है वो

रंग
दर्पण होते हैं
मन का
जैसे तुम्हारी आँखों में जो
शोख रंग है
कह रहा है कि
बसी है किसी की मूरत
और स्मृति उसमे .


झूल रहीं हैं
तुम्हारी अलकें
चूम रही हैं
तुम्हारी पलकें
बंधन से बाहर
निकलने को आतुर
जैसे इन्हें है
किसी का इन्तजार .

धानी चूनर तुम्हारी
उडाए जाती है
बावरी हवा
जैसे कहती है
संग मेरे आओ
पी के देस
बस जाओ .

कदम तुम्हारे
लडखडाये क्यों हैं
रखती हो कहीं
पड़ते कहीं हैं
कहाँ इनको जाना
उनका पता बताना .

कहोगी नहीं
कौन है वो

Saturday, July 17, 2010

आज फिर

आज फिर
मेरे आसमान में
पूरा चाँद है
टिमटिमाते तारे हैं
और असंख्य जुगनू हैं
क्योंकि
तुम करीब हो

आज फिर
साँसों में महक है
मौसम कुछ बहका सा है
मन कुछ गुदगुदा रहा है
क्योंकि
तुम करीब हो

आज फिर
मन चंचल है
तन में लहर सी है
कदम कुछ बहके से हैं
हवा कुछ अलसाई सी है
क्योंकि
तुम करीब हो

Friday, July 16, 2010

इन्तजार

बादलों का झुरमुट है
लेकिन मन का मयूर
नहीं नाचने को तैयार
उसे है किसी का इन्तजार ।

भौरें क्यों चुप हैं
आसमान क्यों खामोश
हवाएं कुछ बहकी सी हैं
तेरे बिन कहाँ मुझे होश ।

रास्ता वही मंजिल वही
पावँ क्यों उठते नहीं
वही मौसम वही मंजर
पलाश क्यों खिलते नहीं ।

पतझड़ में पेड़ों पर
चढ़ाएं हरियाली का रंग
चलो मिलकर उगायें
अंकुर नए संग संग ।

कितने पल बीते तेरे बिन
समय कटता घड़ियाँ गिन
कैसे काटूं रैना जब
ना कटे तुम बिन ये दिन ।

Thursday, July 15, 2010

जीवन है कहानी

जीवन
सुबह साँझ की
है कहानी
दिन और रात
इसकी रवानी ।

कभी पाउँगा तुम्हें
उससे पहले
खोने
की कहानी

सब कुछ मेरा है
ये भ्रम
बंद आँखों से
देखते सवेरा ।

सपने और हकीकत
में है दूरी का
बसेरा
नहीं कुछ मेरा ।

रौशनी जो है
छलावा ही है
परछाई जो है
बस मेरी है ।

Wednesday, July 14, 2010

कहानी हूँ मैं

नदी का प्रवाह हूँ
किसी का हार हूँ
नेह भरा अभिसार हूँ
मैं किसी का प्यार हूँ ।

एक प्रेम पगा गीत हूँ
किसी का मनमीत हूँ
धड़कती धड़कन हूँ मैं
ह्रदय में बसा स्पंदन हूँ ।

गेसुओं की छावं हूँ
रेशम का गावं हूँ
घनेरी घटा बन छा जाऊं
सपनों की ठावं हूँ ।

काजल की धार हूँ
प्रीत की पतवार हूँ
ख़ुशी से जाते हैं छलक
मैं किसी की आन हूँ ।

एक जुगनू हूँ
कंगन की खनखन हूँ
तारों भरी रात हूँ
मैं तेरा श्रृंगार हूँ ।

लाज का पानी हूँ
दिल की रवानी हूँ
लबों पर न आये कभी
मैं ऐसी कहानी हूँ .

Sunday, July 11, 2010

एक नजर भर

एक गुलाबी मुस्कान
खिलती है
तुम्हारे होठों पर
और ठहर जाती है
गालों पर
अबीर की
एक पतली परत।

कोई भी बात
तुम कहते हो यूँ ही
और मन के आँगन में
फिरती है
तुम्हारी स्मृति की
रंगीन तितली।

एक हल्का-सी छुअन
हो जाती है तुमसे
और मोगरा
खिल उठता है
दिल की स्निग्ध क्यारी में।

एक पल के लिए
दिखता है तुम्हारा चेहरा
और पलकों की तलहटी में
देर तक लहराता है
मुस्कुराता चाँद।

एक नजर भर
देखते हो तुम
और देह के सितार में
तरंगित होती है
प्यार की रागिनी।

Thursday, July 8, 2010

पहला बादल

आकाश में पहला बादल
चातक करता था इन्तजार
बदरा चले गए बिन बरसे
प्यासा ही रह गया बेकरार ।

मानसून की बूँद न आई
धरती रह गई प्यासी सी
मेघ न आये बहार न आई
बहे गरम हवा बौराई सी ।

पवन खुश्क नहीं रही नमी
नम थी जो मेरी आँखें
पत्तों में काई की कमी
उड़ने को आतुर मेरी पांखें ।

क्यों सूना है दालान मेरा
ये घन दल क्यों लौट गए
चातक ने भी छोड़ दी आस
क्या प्रिय मेरे हैं रूठ गए ।

कौन सुने हिया की हाय
जीवन में नहीं जान यहाँ
किसको दें उलाहना यह
तुम बिन अटके हैं प्राण यहाँ ।

तुम्हारा नशा

बीता बसंत वर्षा आने को है
तुम्हारा नशा ना जाने को है ।

जो गुलाबी स्मित ओढ़ आयी हो तुम
मोहकता मुझ पर छा जाने को है

बेखबर तुम हलचलों से दुनिया की
काजल कोई तुम्हारा चुराने को है ।

हर रंग समा जाना चाहता है तुममें
इन्द्रधनुष भी नभ से उतर आने को है ।

इन्तजार तुम्हारा रहता है हर पल
तुम्हारे बिन धड़कन रुक जाने को है ।

लगा लो इक बार ह्रदय से प्रिये
समय का ये पल ठहर जाने को है ।

Tuesday, July 6, 2010

किताब

किताब के पन्नों को
पलटते हुए ये ख्याल आया
यूं पलट जाए जिन्दगी
सोचकर रोमांच हो आया ।

ख्वाबों में जो बसते हैं
सम्मुख आ जाएँ तो क्या हो
किताबें सपने बेच रहीं हैं
हकीकत हो जाए तो क्या हो ।

उनका अक्स साथ लेकर
आँख है खुलती दिन ढलता
पलकें भारी होने से लेकर
रात ढले फिर दिन खुलता ।

हर पन्ने से प्यार मुझे
हर हरफ लगे उपहार मुझे
जो रहते हैं संग संग
चाहूं देना सब राग रंग ।

पढ़ना चाहूं मैं ऐसे
साँस समाई हो जैसे
हर पन्ना बने प्रेम अनुबंध
फूल और खुश्बू का सम्बन्ध ।

Sunday, July 4, 2010

इनमें भरा है जीवन

तुम्हारी आँखें
जैसे समाया है उसमें
सूर्य
और झिर झिर झलकती हैं
रश्मियाँ

इनमें भरी है
जीवन की
ज्योति
जगमग करती है
जैसे प्रकृति की हो
दामिनियाँ

ये पनीले नयन
बसता है इनमें
सुकून
मेरा बसेरा है
सपने करते है जहाँ
सरगोशियाँ

तुम्हारा मन
छलकता है नेह जिनमें
है समंदर
लहरें करती हैं जहाँ
अठखेलियाँ

तुम्हारा सान्निध्य
शीतलता भरी है जिसमें
है घनी छाँव
जहाँ खिलखिलाती हैं
चाँदनियाँ ।

Friday, July 2, 2010

तुम्हारे होने से

अनंत इच्छाएं बन
कोपल
उग आती हैं
ह्रदय धरातल पर
जब तुम्हारी
मुस्कान
मेरे दिल में उतर जाती है ।

सैंकड़ों सुसुप्त स्वपन
सुगबुगाने लगते हैं
जब
तुम्हारी स्नेहिल चितवन
मेरी आँखों में तैर जाती है ।

असीम चाहतें
सिमट
आना चाहती हैं
जब तुमसे मिलने
की घड़ी करीब आती है ।

भीने भीने से भाव
मोगरा बन
महकने लगते हैं
जब तपती सांसें
तुम्हें छूकर वापस आती हैं ।