Monday, July 19, 2010

कौन है वो

रंग
दर्पण होते हैं
मन का
जैसे तुम्हारी आँखों में जो
शोख रंग है
कह रहा है कि
बसी है किसी की मूरत
और स्मृति उसमे .


झूल रहीं हैं
तुम्हारी अलकें
चूम रही हैं
तुम्हारी पलकें
बंधन से बाहर
निकलने को आतुर
जैसे इन्हें है
किसी का इन्तजार .

धानी चूनर तुम्हारी
उडाए जाती है
बावरी हवा
जैसे कहती है
संग मेरे आओ
पी के देस
बस जाओ .

कदम तुम्हारे
लडखडाये क्यों हैं
रखती हो कहीं
पड़ते कहीं हैं
कहाँ इनको जाना
उनका पता बताना .

कहोगी नहीं
कौन है वो

3 comments:

  1. वाह! क्या नजाकत है और क्या छेड़ है...

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  2. effort is excellent

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