रंग
दर्पण होते हैं
मन का
जैसे तुम्हारी आँखों में जो
शोख रंग है
कह रहा है कि
बसी है किसी की मूरत
और स्मृति उसमे .
झूल रहीं हैं
तुम्हारी अलकें
चूम रही हैं
तुम्हारी पलकें
बंधन से बाहर
निकलने को आतुर
जैसे इन्हें है
किसी का इन्तजार .
धानी चूनर तुम्हारी
उडाए जाती है
बावरी हवा
जैसे कहती है
संग मेरे आओ
पी के देस
बस जाओ .
कदम तुम्हारे
लडखडाये क्यों हैं
रखती हो कहीं
पड़ते कहीं हैं
कहाँ इनको जाना
उनका पता बताना .
कहोगी नहीं
कौन है वो
वाह! क्या नजाकत है और क्या छेड़ है...
ReplyDeletevery romantic ..
ReplyDeleteeffort is excellent
ReplyDelete