आकाश में पहला बादल
चातक करता था इन्तजार
बदरा चले गए बिन बरसे
प्यासा ही रह गया बेकरार ।
मानसून की बूँद न आई
धरती रह गई प्यासी सी
मेघ न आये बहार न आई
बहे गरम हवा बौराई सी ।
पवन खुश्क नहीं रही नमी
नम थी जो मेरी आँखें
पत्तों में काई की कमी
उड़ने को आतुर मेरी पांखें ।
क्यों सूना है दालान मेरा
ये घन दल क्यों लौट गए
चातक ने भी छोड़ दी आस
क्या प्रिय मेरे हैं रूठ गए ।
कौन सुने हिया की हाय
जीवन में नहीं जान यहाँ
किसको दें उलाहना यह
तुम बिन अटके हैं प्राण यहाँ ।
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