Tuesday, July 27, 2010

क्षितिज

पृथ्वी तुम
मैं आकाश
जितने दूर
उतने पास ।

तुम देखो
उठाकर पलक
मैं देखूं
तुम्हें अपलक ।

तुम हो एक
निर्मल गजल
मुझमें है
वायु सजल ।

नीलकमल तुम
खुशबू मैं
मुझमें तुम
महकूँ मैं ।

तुम सूर्य
मैं नई भोर
तुम चंदा
मैं शीतल डोर ।

उर्जा तुम
ऊष्मा मैं
ह्रदय तुम
स्पंदन मैं ।

मिलन होगा
सुखद सपने
क्षितिज होगा
प्रेमपाश में अपने






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