Tuesday, July 6, 2010

किताब

किताब के पन्नों को
पलटते हुए ये ख्याल आया
यूं पलट जाए जिन्दगी
सोचकर रोमांच हो आया ।

ख्वाबों में जो बसते हैं
सम्मुख आ जाएँ तो क्या हो
किताबें सपने बेच रहीं हैं
हकीकत हो जाए तो क्या हो ।

उनका अक्स साथ लेकर
आँख है खुलती दिन ढलता
पलकें भारी होने से लेकर
रात ढले फिर दिन खुलता ।

हर पन्ने से प्यार मुझे
हर हरफ लगे उपहार मुझे
जो रहते हैं संग संग
चाहूं देना सब राग रंग ।

पढ़ना चाहूं मैं ऐसे
साँस समाई हो जैसे
हर पन्ना बने प्रेम अनुबंध
फूल और खुश्बू का सम्बन्ध ।

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