Friday, December 31, 2010

नए साल की लख लख वधाई

धवल दूध सा उज्जवल मुख

घुंघराली लट है खेल रही
नैनो में छाई है शोखी
मुस्कान अधर पर तैर रही ।

तुम हो प्रियतम मेरे
कहते आती है लाज मुझे
मैं बनूँ तुम्हारी प्रियतमा
सिहरन सी आती है मुझे ।

पंखुरियों का महा सैलाब
ले जाये बहा मझधार में
नए वर्ष की है आरजू
खुशबुओं का झंझावात
रच बस जाये तुम्हारे संसार में 

Monday, December 27, 2010

नया साल आया है










दुल्हन सा बैचैन मन
जागा सारी रात
नए वर्ष के द्वार पर
आ पहुंची बारात ।
शहनाई पर 'भैरवी'
छेड़े कोई राग
या फूलों पर तितलियाँ
लेकर उड़ीं पराग ।
इतनी सी सौगात ला
आने वाले साल
पीने को पानी मिले
सस्ता आटा , दाल ।
भाषा, मजहब, प्रान्त के
झगडे और संघर्ष
तू ही आकर दूर कर
मेरे नूतन वर्ष ।
ये बूंदें हैं ओस की
या मोती का थाल
आओ देखें गेंहू के
खेतों में नव साल ।
वो सरसों के खेत में
सपने, खुशियाँ, हर्ष
अपने घर और गाँव भी
आया है नव वर्ष ।
नई भोर की रश्मियों
रुको हमारे देश
अंधियारों से आखिरी
जंग अभी है शेष ।

Monday, December 20, 2010

सर्दी













कोहरे के आलिंगन में
है भोर ने आँखे खोली
चारों ओर देख कुहासा
न निकली उसकी बोली ।

सरजू भैया मिलें कहीं
तो उनसे सब बोलो
क्यों ओढ़े हो बर्फ रजाई
अब तो आंखे खोलो ।

दर्शन दो, हे आदित्य
जन जीवन क्यों ठहराया है
जड़ चेतन सब कंपकंपा रहे
कैसा कहर बरपाया है ।

नरम धूप का वह टुकड़ा
गुनगुनी सी कितनी भली लगे
फैला दो अपना उजास
चराचर को भी गति मिले

करूँ किसको मैं नमस्कार
तुम तो बस छिपकर बैठे हो
करूँ किसको अर्ध्य अर्पण
तुम तो बस रूठे बैठे हो ।

रक्त जम गया है नस में
पल्लव भी मुरझाया है
डोर खींच ली जीवन की
निर्धन का हांड कंपाया है ।

इस मौसम में एक सहारा
बस अमृत का प्याला
लबालब जिसमें नेह भरी
हो साकी, कोई पीने वाला । 

Monday, December 13, 2010

धरा

चित्र साभार गूगल 

 
जननी सा विस्तार समाया 
आँचल जैसी छाँव बसी
गुण अवगुण अंग लगाया
ममता हँसे निर्मल हंसी .

दूब नरम  या अड़ा पहाड़
आधार ठोस मैं ही तो हूँ
कलकल नदिया सागर दहाड़
पड़ाव आखिरी मैं ही तो हूँ .

अन्न का दाना कंद मूल
सब जीवों का जीवन सार
हीरा पन्ना मोती मानिक
मुझमें जन्मते लिए आकार .

शांत समंदर है गहराता
अपने भीतर संसार लिए 
ज्वालामुखी लावा गरमाता
थोडा सा कुछ  क्रोध लिए .

मैं सृष्टा मुझसे सृष्टि
है जीवन में हलचल
करूँ दुलार स्नेह  वृष्टि
बढे प्रेम धार पलपल . 

मैं  वसुंधरा धैर्य घना
माता जननी या पालक
देव-मनुज करें वंदना
सब जीवों की परिचालक .
अति उदार करुणा बहती  
अलंकार सब संसाधन
दोहन को ना कहती
हरीतिमा है प्रसाधन  . 

छू लो तुम चाहे  गगन
जमीं पर आना ही होगा
संसार झुका रहो मगन
मुझमें समाना ही होगा .












Thursday, December 9, 2010

कलश












कलश प्रीत का लिए चली
आराध्य तुम्हें अर्पण कर दूं
चुन ली कलियाँ खिली खिली
कहो प्रिय समर्पण कर दूं .

सुरा कलश नैन तुम्हारे
वाणी से सुधा बरसती है
देख तुम्हें मन शंख बजे
पतित पावनी बहती है .

भावों की भरकर गागर
नेह छलकता जाता है
बसा वहां विश्वास का सागर
उमड़ता बाहर आता है .

किधर रखूँ अनमोल गगरिया
कहीं छलक न जाए अमृत
प्रेम की प्यासी अपनी नगरिया
रह जाएँ न हम तुम अतृप्त .

आँखों में बसाऊं ह्रदय छिपाऊं
दे दूं आवरण पलकों का
कस्तूरी महके कैसे बताऊँ
ले लूं बहाना अलकों का .

जो तुम मिल जाओ डगर
ये कलश तुम्हारे हाथ धरूं
किससे कहूं व्यथा अपनी
मन की मन ही में रखूँ .

भरा कलश प्रतीक प्रेम का
वैभव का घट भी कहलाता
मैं बन आऊ कलश शगुन का
मन में भाव हर पल आता

Tuesday, December 7, 2010

पल्लव
















तरू का लघु रूप हूँ मैं
पल्लव नवीन कहलाता हूँ
सुकुमार सूक्ष्म कोमल हूँ मैं
सभी के मन को भाता हूँ .

बीज रोप दिया माली ने
नित्य प्रतीक्षा करता है
आँखें खोली अंकुर ने
मन ही मन हँसता है .

छोटा सा एक नन्हा सा
पाषाण भेद कर आया
धरती ने है रचा मुझे
ममता से अपनी सहलाया .

मेरे जैसे पल्लव पुलकित
कल वटवृक्ष बन जायेंगे
कंद मूल से वे छलकत
सृष्टि रक्षक कहलायेंगे .

मैं हूँ तुम्हारा बालरूप
पेड़ घना हो जाऊँगा
जन्मेंगे मुझ से पल्लव
उन पर दुलार लुटाऊंगा .

करते कलोल काक कोकिल
मीठा संगीत सुनायेंगे
तोता मैना के किस्से
पथिकों का मन बहलाएँगे .

हरी भरी वसुंधरा को
बंजर ना होने देंगे हम
हरित फलित रहे सदा
अक्षत स्मित रखेंगे हम .

Saturday, December 4, 2010

पीले पड़ते पत्ते











पतझड़ में पत्ते पीले
वियोगी से हो जाते हैं 
बिरहन के नैना गीले
व्यथा कथा बताते हैं .
 
शाख पर सजे शोभित 
वासंती बयार झुलाते हैं
आता  जब पतझड़ क्रोधित 
धरा पर आ गिर जाते हैं . 
 
छूट गए  रिश्ते सब
टूट जाता है   नाता 
साथी छूट गए जब 
जीवन मौन राग गाता .
 
कोंपल पल्लव नवीन
देख सभी थे हर्षाते
टूटकर हुए ग़मगीन
फिर से ना जुड़ पाते .
 
हरा भरा घर अपना
चिड़िया बसाये बसेरा
स्वयं  गर्मी में तपना
देना घनी छाँव का डेरा .
 
कैसा सुंदर था जीवन 
रागरंग में याद ना आई
फला हो चन्दन उपवन 
जाने की अब  बेला आई  
 
 
पीले पड़ते  पत्ते कहते 
क्षणभंगुरता  की कहानी
आना फिर जाना झड़ते  
याद रखो ये जबानी .  

Wednesday, December 1, 2010

दोनों के दोनों















तुम यदि
वसंत हो
मैं भी तो
हेमंत हूँ
                     प्रिय हैं
                     दोनों के दोनों

तुम यदि
भोर हो
मैं भी तो
उजास हूँ
                     संग हैं
                     दोनों के दोनों

तुम यदि
राग हो
मैं भी तो
ताल हूँ
                    मधुर हैं
                    दोनों के दोनों

तुम यदि
चाँद हो
मैं भी तो
चाँदी डोर हूँ
                   शीतल हैं
                   दोनों के दोनों

तुम यदि
पुष्प हो
मैं भी तो
पराग हूँ
                   महकते हैं
                  दोनों के दोनों

तुम यदि
फाग हो
मैं भी तो
गुलाल हूँ
                   रंगीन हैं
                  दोनों के दोनों

तुम यदि
गीत हो
मैं भी तो
संगीत हूँ
                  चुम्बक हैं
                  दोनों के दोनों

तुम यदि
प्रेम हो
मैं भी तो
विश्वास हूँ
                  पूरक हैं
                 दोनों के दोनों .

Tuesday, November 30, 2010

जुगनू




चमकता है एक तारा
अँधेरी घनेरी रातों में
चमकीला सा सितारा
कर लूं बंद मुट्ठी में

आशाओं की पहली बही
आस का उड़ता सा घन
जिंदगी थोड़ी छोटी सही
देता प्रकाश पुंज बन

जुगनू मिलेगा हर जगह
चाहो तो चूनर सजा लो
चाँद सूरज की तरह
प्रिय आँखों में बसा लो

राह हो चाहे बड़ी विकट
संचारित करता है सन्देश
गहन निशा का अंत निकट
कहता है धरे प्रिय भेस

सदा चमकती रहे तुम्हारी
मन की बगिया मुझ जैसी
अस्त ना हो प्रीत तुम्हारी
रहे पल्लवित तुम जैसी

जुगनू बन मैं आ जाऊं
भाल तुम्हारे रहूँ जगमग
समीप बना जो रह पाऊं
बिछ जाऊं प्रिया के पग पग

Sunday, November 28, 2010

मैं नहीं मैं





उगते सूरज की लाली
लाली की नरम धूप हूँ मैं 
 
आँगन मैं गौरैया चहके 
चीं चीं का मधुर संगीत हूँ मैं 
 
सिहरा दे जो हवा का झोंका 
उसमें बसा स्निग्ध स्पर्श हूँ मैं 
 
देख उन्हें नजरें झुक जाए 
मद नैनों  की लाज हूँ मैं 
 
राह देखते सावन सूने 
एक लम्बा इन्तजार हूँ मैं  
 
कभी भी  पूरा हो न  सके 
ऐसा अपूर्ण स्वपन हूँ मैं 
 
लगता हैं मैं नहीं मैं 
मन के भावों का भार हूँ मैं

Thursday, November 25, 2010

पगडण्डी

चित्र साभार गूगल 










पगडण्डी
जो तुम तक
नहीं पहुँचती
नहीं जाता मैं उस पर

हवाएं
जो नहीं लाती
तुम्हारी कुशल
नहीं सिहराती मुझे

संगीत
जिसमें तुम ना हो
मन के तारों को
नहीं करता झंकृत

नींद
तुम्हारे सपने ना हो
जिसमें आती नहीं
ना ही सुलाती मुझे

सुबह
नहीं होती खुशनुमा
तुमसे मिलने का यदि
ना हो कोई कारण

पूजा
भावों का नैवैध्य
तुम्हें चढ़ाये बिना
होती नहीं सम्पूर्ण .

Tuesday, November 23, 2010

अधूरे सपने

साभार चित्र  गूगल 












कल्पना के घोड़े पर सवार
मन भरता स्वछन्द उड़ान
भरने को रहता तैयार
अल्पना में एक नया प्राण .

नित देखे सपने नए नए
अलभ्य सुलभ पा जाऊं मैं
कुछ छोटे कुछ रहे विशेष
अधूरे जो साकार करूँ मैं.

सपनों की असंख्य कतार
छोर न इसका दिखता है
एक से जो पा जाऊं पार
सम्मुख समूह उमड़ता है .

विदित मुझे ये असंभव है
चंचल मन को मनाये कौन
सुंदर सा स्वपन सजाया है
सपने से मुझे जगाये कौन .

गढ़ना उसका हुआ सफल
जिसने है पा लिया लक्ष्य
अधूरे सपने हुए विकल
है वृहद यह प्रश्न यक्ष .

यात्रा जीवन की बीत रही
समय का पहिया गतिमान
उसकी  धुरी है घूम रही
कहता मैं बहुत बलवान .

मनुज ह्रदय की प्रकृति
रच लेता अपना संसार
अपना ईश्वर अपनी धरती
सुप्त कामनाओं का भंडार .

अधूरे सपनों का मेला
नैनो में उन्हें बसाये रहना
आएगा प्रीत लहर का रेला
आशा किरण थामे रखना .

Saturday, November 20, 2010

जीवन है


चित्र  साभार  गूगल  












जीवन है
एक उत्सव
जब हो
तुम्हारा तत्त्व


जीवन है
एक उल्लास
साथ हो
तुम्हारा परिहास
जीवन है
एक नई भोर
तुम्हारे प्रेम का
ना कोई छोर .


जीवन है
चटक चांदनी
संग बजे जब
तुम्हारी रागिनी

जीवन है
खनकता कंगन
बंध जाए जो
तुमसे बंधन .


जीवन है
सुरा का प्याला
मिले जो तुम सा
पीने वाला .

जीवन है
एक प्रेम कहानी
राधा रही
कृष्ण दीवानी .


जीवन है
एक सप्तम राग
सुर ताल संग
खेले फाग .
जीवन है
एक वसंत
रंग हैं इसमें
अति अनंत .


जीवन है
एक रसमय गीत
शहद घोलती
तुम्हारी प्रीत .
जीवन है
 एक सुंदर रीत
जगमग करता
मन का दीप .


जीवन है
एक आँगन
चूल्हा तुलसी
और चन्दन .
जीवन है
एक पावन पूजा
हुआ ना तुझ सा
कोई दूजा .

Thursday, November 18, 2010

पनघट

चित्र गूगल से साभार













नाम लेते ही
पनघट
कल्पना में
सजीव हो उठता है
एक चित्र

एक कुआं
पानी खींचती एक नवयौवना
सुंदरियों का एक समूह
पानी का घट उठाये
इन्तजार में बैठी
एक गोरी

जल भरने से ज्यादा
बातें करने में व्यस्त
उनकी बातों में प्रेम और
प्रेम कहानियां
प्रिय की बातें करने का
सबसे सुरक्षित स्थान
एक झलक पाने
का स्थायी ठौर

उनकी गगरी से
छलकते जल
की खुशबू
से भरता रोमांच
पगडंडियों पर
थिरकते पावों
की रुनझुन
से उपजता संगीत

राधा की मटकी
कृष्ण के कंकड़
सोहनी की प्रतीक्षा
महिवाल की आकांक्षा
साक्षी जिनके
पनघट के घाट
कहाँ रहे वो ठाठ

आज नहीं हैं पनघट
नहीं प्रत्यक्ष हैं
पनिहारिने
लेकिन अब भी
जीवंत हैं
पनघट से जुडी
प्रेम कहानियां
कहीं न कहीं अंतस में .

Wednesday, November 17, 2010

कटी पतंग














पतंग
की तरह
लगता है 
अपना भी जीवन .
 
पतंग
तय नहीं करती
अपनी दिशा
हवा का रुख
ही करता है विवश
निश्चित दिशा
की ओर उसकी उड़ान
और उड़ान की गति
होती है
किन्हीं हाथों में .
 
समय के थपेड़े  
और
परिस्थितियां
ही तय करते हैं
हमारे जीवन की दिशा
और नियंत्रित होती है
गति
किन्हीं हाथों से .
 
खास अवसरों पर
लड़ाए जाते हैं
पेंच
मनोरंजन के लिए
जो पतंग से ज्यादा
उनके मालिकों के बीच
होते हैं
शीतयुद्ध जैसे . 
 
पतंग से
नहीं पूछता कोई
कि  कैसा लगता है उसे
जब लड़ाया जाता है
मन बहलाव के लिए
अपना वर्चस्व दिखाने के लिए .
 
डोर चाहे
कितनी भी मजबूत
क्यों न हो
कटना ही उसकी
नियति है 
 
रंग बिरंगी
पतंगों के
भाग्य की
विडंबना ही है कि
उन्हें  खुद नहीं पता 
कि कटने के बाद 
गिरेंगी किसके आँगन 
या फिर किसी 
तरू शाख पर 
झूलती रहेंगी 
चिंदी चिंदी होने तक .  

Monday, November 15, 2010

नजर उठा बस तक लेना

होगा जब मधुमास प्रहर
मलय बावरी इतराएगी
डोलेगी  सिहर सिहर
प्रेम संदेशा लाएगी .

सपनो के लगा के पंख
चाँद से मिलने जायेगी
चाँद उतर आए धरा पर
चंदनिया पैर पखारेगी .

झिलमिल रंगीन सितारे
डोला लेकर आयेंगे
चंदा सूरज बने कहार
पटरानी को ले जायेंगे .

उतावले मेरी बांह हिंडोले
तुम्हें आठों पहर झुलाएंगे
थक जाएँ जब नैन परिंदे
सपनों  में उन्हें सुलायेंगें .

आओगे प्रिय जिस राह से
मुझे जरा बतला देना
राह बुहार दूं पलकों से
नजर उठा बस तक लेना .

Sunday, November 14, 2010

लौट जाओ तुम अपने नीड़

अधरों का तनिक  विस्तार 
करती  विस्तृत  दुनिया उसकी
एक हंसी की पतली  रेखा
भर देती  झोली उसकी .

एक झलक पाने को बस
सदियों तक रखते धीर
चंदा सूरज तारे पूछे
किसके लिए  रहो  अधीर  .

पलक कहे नैनों में भर लूं
ह्रदय समाना चाहे आह में
बाहें कहती कंठं लगा लूं
कदम जाए ठिठक  राह में .

मलिनता देखी जो मुख पर
सब ओर छा जाए अंधकार
ज्योतिपुंज  ले आऊं  धरा पर
जगमग का हो जाए अधिकार .

सपनों का मेरे पता  पूछते
धरा से लेकर अम्बर तक
खोज में उनकी रहे जूझते
जाऊं उन्हें  लाने  पाताल तक . 

स्मृतियाँ मेरी उन्हें रूलाती
हर लेती हैं दिल का चैन
प्रीत की मैना उन्हें सताती
जाग जाग कर काटे  रैन .

लौट जाओ तुम अपने  नीड़
पाषाण  ह्रदय पर रख लूं मैं
छुपा न ले दुनिया की भीड़
भावों में अपने भर लूं मैं .

Wednesday, November 10, 2010

लक्ष्य नहीं मैं

व्यक्तित्व में मेरे
थोडा गुरुत्व
करता आकृष्ट
तुम्हारा प्रभुत्व .

निजता मेरी
लगे भली
तुमको देती
कुछ खलबली .

शब्द मेरे
थोड़े साधारण
लगते तुमको
अति असाधारण .

सपने मेरे
आँखों में तुम्हारी
प्रश्न तेरे
भरते हैं खुमारी .

पलकें मेरी
आस सजाये
होगी पूरी
दिन कब आये .

भाव मेरे
लगते अनदेखे
मन के चितेरे
रहते बिनदेखे .

मेरा मोहपाश
तुमको बांधे
लक्ष्य नहीं मैं
बढ़ जाओ आगे .

Monday, November 8, 2010

आंसू



बहुत भारहीन हो तुम
जरा खुश हुए
कि छलक आते हो तुम
थोडा दिल दुखा नहीं
कि समंदर ले आते हो .




लगता है मीठा
ख़ुशी के अतिरेक में
यह खारा पानी
लाख छिपाना चाहो
बह ही जाता है .

कीमत भी भिन्न
भिन्न भिन्न
स्थितियों में
प्रिया के आंसू
मोतियों से भी मंहगे
माँ के आँसू
अनमोल
आंकी नहीं जा सकती
जिसकी कीमत

गरीब के आंसू
बेमोल
नहीं जिसकी
कोई कीमत
बहते है लावारिसं
और स्वयं सूख भी जाते है
नहीं बढाता कोई हाथ
उसे पोंछने को
देने को दिलासा

कभी निर्णायक
भी बन जाते है ये
पुख्ता साक्ष्य भी है
सच और झूठ का
निर्णय टिका होता है
कभी कभी इन पर
ये तो उन आँखों
पर निर्भर है
जिनमें बसते हैं
ये आंसू

कभी हंसाते है
कभी रुलाते है ये
काबू पाना इन पर
नहीं आसान
छलकाना इनको
भी नहीं आसान
छिपाना भी है
बहुत मुश्किल

आंसुओं 
तुम्हें तुम्हारी कसम
कभी न आना
मेरे प्रिय के
नैनो में
बदल लेना राह
उन लाल डोरों से
जिनमें बसते हैं हम .

Wednesday, November 3, 2010

इस दिवाली तुम आना





























इस दिवाली तुम आना


चमकता ध्रुवतारा बनकर


मेरे झरोखे टिक जाना


एक सबल आशा बनकर .






इस दिवाली तुम आना


नीलकमल फूल बनकर


शीश देवों के अर्पित होना


मेरी आराधना बनकर .






इस दिवाली तुम आना


सूर्यमुखी सा तेज लिए


बिन देखे न कुम्हलाना


सूर्योदय की आस लिए .






इस दिवाली तुम आना


भावों का कुंड बनकर


मन का सारा तम हरना


अलौकिक एक दीप बनकर .






इस दिवाली तुम आना


मेरी प्यारी मैना बनकर


मीठे बोल सुना जाना


मधुमास की रैना बनकर .






इस दिवाली तुम आना


मोगरे की कली बनकर


तन मन महका जाना


जूडे की वेणी बनकर .






इस दिवाली तुम आना


सुंदर सी कविता बनकर


सारा द्वेष तिरोहित करना


निर्मल सी सरिता बनकर .






इस दिवाली तुम आना


सखा मेरे मीत बनकर


जीवन दीप्त मेरा करना


जादुई दीपक बनकर .

Tuesday, November 2, 2010

परिवर्तन

महुवा था गिरता
मेरे दालान ओसारे
खुशबू था फैलाता
आँगन और चौबारे .

पौ फटने के साथ
पनघट पर जाना
सखियों से मिलना
बतियाँ भर लाना .

पूरब की लाली
चमकाती बाली
रंभाती गइयां
हांकती मईया .

अन्न और दलहन
कहलाता था गल्ला
छोटी खुशियों से
हँसता था मोहल्ला .

आंसू या मुस्कान
सब होते थे साझे
जरा छलक जाए
सब रहते थे आगे .

कहाँ गए वो
दिन सीधे सादे
सूरज था फीका
बिंदिया के आगे .

आया ये कैसा
परिवर्तन है
अदृश्य  हुआ
सब आकर्षण है .

चाँद और तारे
सब हैं यथावत
धरती की धुरी
गति से समागत .

कहाँ खो गया
वो अमृत कलश
गजानन एरावत
कामधेनु की झलक .

रिक्त हो चला
मनु तेरा संसार
भाव  बिन फीका
श्रद्धा का अभिसार .

रंगों की एक तूलिका
फेर दो मुझ पर कभी
खिल उठे कोई कलिका
गुनगुना उठे भ्रमर तभी.

Monday, November 1, 2010

तय नहीं था जो

सूरज था अपने यौवन पर
बिखरी अभी थी लालिमा
घन दल आये उस पर
छा गई घोर कालिमा .

बसंत था कुछ अलसाया
थी बहारें भी बहकी हुई
कौन राह से पतझड़ आया
बगिया सारी सुनसान हुई .

आशा थी पुष्प आया
नया सा मेरे उपवन में
बैरी अंधड़ बन आया
वीरानी दे गया चेतन में .

बेमौसम की ये बरसात
बहा ले गई मन का गाँव 
दूर कर दिया अपनों से
रहा नहीं कोई अपना ठाव .

चंदा था बहुत गुमान किए
चांदनी संग करता अठखेली
मैं तेजस घट साथ लिए
रूपस न तुम मुझसे अलबेली .

कैसे बदला मीत मेरा
जीवन हो गया रसहीन
तय नहीं था जो गया गुजर
कैसे रहना होगा तुम बिन .

Friday, October 29, 2010

मेरे हिस्से का आसमान












बादल है गडड मड्ड
रहे हैं घुमड़
लेकर अपनी स्याही
ओट में है
आशाओं का सूरज
धूमिल हो रहे है
मेरी किस्मत के सितारे .

गडगडाहट से इनकी
गिरती हैं
उम्मीदें
कड़कड़ाहट से इनकी
डिगता  है
विश्वास  .

छाये है
बनकर कालिमा
लक्ष्यों पर मेरे
छिपायें है
सारी लालिमा
भोर की मेरे

अब बरस भी जाओ
फुहार बनकर
या बहक ही जाओ
बहार बनकर
कि छंट जाए
ये बादल चौमासे
चमक जाए सूरज
मेरे ओसारे

हो जाए धवल
मेरे हिस्से का आसमान
खिल उठे चांदनी
चाँद की मेरे
लाल हो जाए लाली
आदित्य की मेरे

Wednesday, October 27, 2010

चाँद

ऐ चाँद
बहुत मुस्कुरा रहे हो
आज दिन है
तुम्हारा
कितना इतरा रहे हो

एक झलक को
व्याकुल
पूजनीय हो जिनके
रखा है
जिन्होंने
निर्जला व्रत
पाने को तुमसे
अक्षय अक्षत

आतुर है
वे भी देखने को
तुम्हें
जो रखते है तुमसे
ईर्ष्या
उनका स्थान
जो लिया है
तुमने

कवियों के
रहे हो प्रिय
आज प्रिया के भी हो
चाहती है
उतर आओ तुम
मुख पर उसके
कर दो समाहित
उसमें सभी
सोलह चन्द्रकलाएं

साक्षी हो तुम
युगल हंस
के भाव भीने
प्रणय के
परन्तु
याद होगी अवश्य
वह सूनी रात
जब बिरहन के
अश्रुओं ने
कर दी थी नम
तुम्हारी भी पलकें

उपवास
करवाचौथ का
और
अर्चना तुम्हारी
रखना नजर
न जाये
कोई रात काली
रखना ध्यान
न रहे
कोई झोली खाली

देना
सभी को
वरदान
अमर प्रेम का .

Monday, October 25, 2010

ईश्वर नहीं मैं

दग्ध
कर देने वाले
व्यंग वाण
सुनकर भी
चुप हूँ मैं ।

उपहास उड़ाते
मित्र वृन्द
उपेक्षा
तिरस्कार
करते प्रियजन
पर मौन हूँ मैं ।

उँगलियाँ
जो उठ रही हैं
मेरी ओर
देखकर भी
निर्लिप्त हूँ मैं ।

मुझमें
स्पंदित है ह्रदय
अनगिनत
नश्तर हैं जिस पर
सांसे
चल रही हैं
धौंकनी की तरह
पर शांत हूँ मैं ।

दुःख
होता है पाकर
अवहेलना
अपमान
अनर्गल बातें
देती हैं कष्ट
पर तटस्थ हूँ मैं ।

सुगबुगाते है
जब भी
स्वपन
सुला देती हूँ उन्हें
थपथपाकर ।

सिर उठाती हैं
जब भी
सुसुप्त इच्छाएं
चुप करा देती हूँ
उन्हें आँखों से ।

फिर भी
मुझे नहीं
कोई शिकायत
किसी से
खुश हूँ मैं ।
पर ईश्वर नहीं मैं ।

Friday, October 22, 2010

जीवन सार

बहती सरिता सा जीवन
धार बहे कलकल करती
गिनता रहता यह उपवन
पल पल की आहुति देती ।

रेशम सी मखमली कभी
पथरीली कभी पहाड़ों सी
महासागर सी शांत कभी
अल्हड कभी नदी चंचल सी ।

धूप छाँव के मंजर में
दो पल को सुस्ता लेना
समय से धूमिल एक चेहरा
सुखद स्मृति दोहरा लेना ।

पगडण्डी पर जीवन की
हाथ थाम तुम चलना
राह पड़े जितने पोखर
संभलकर जरा निकलना ।

निर्झरनी सी आसपास
संग संगीत बन बजना
सुकोमल साया रहे पास
मन खनके जैसे कंगना ।

पलकों में सपने भर दूं
नहला दूं इन्द्रधनुष से
मस्तक पूरा चाँद बिठा दूं
भर दूं आँचल तारों से ।

दर्शन मेरा बना यही
अंतस अभिलाषा है मेरी
है जीवन का सार यही
अभिमान मेरा मुस्कान तेरी .

Wednesday, October 20, 2010

तुम समझ न पाए

हौले से दस्तक दी तुमने
खुल गए ह्रदय के द्वार
मन पंछी लगा उड़ने
आया सपनों का राजकुमार ।


पुष्प खिले शरमाई कलियाँ
महकी हवा पर लिए आग
भ्रमर ने गुंजित की गलियां
तितली ने छेड़ा प्रेम राग ।


सोने सा बिखरा पराग
शहजादी परियों की भागे
इच्छाधारी पंख लगाये
उन्मुक्त गगन से आगे .


सोने सा दिन चाँदी रातें
हिलोर तरंगित तन मन में
बाहें झूला मीठी बातें
खिले पलाश चन्दन वन में .


समय चक्र की धुरी घूमे
मौन था सब देख रहा
थरथराते कदम धरा चूमे
स्वपन सलोना रूठ गया .


दीये के पीछे अँधियारा
उसकी लौ पर कहाँ छाये
बाती बिन कहाँ जले दीया
क्यों तुम समझ न पाए .

Tuesday, October 19, 2010

अभिशप्त

एक अहिल्या थी नारी
संत्रास पति ने दिया उसे
पाषाण हुई वह बेचारी
कलंक भाग्य ने दिया उसे ।


नर समाज का विकृत रूप
साध्वी ने कैसे गरल पिया
किससे गुहार कौन अनुरूप
जीवन शिला सा कैसे जिया ।


दुर्दशा देखी एक सती की
शर्मसार था तेजस रूप
त्रेता युग की छवि धूमिल थी
वीभत्स कृत्य पर सब थे चुप ।


तपोबल का अभिमान न था
था अनादर नारी शक्ति का
निर्मूल आशंका का संशय था
था घटता वर्चस्व पुरुष का ।


देवी कहकर मंडित करते
फिर क्योंकर उनको शाप दिया
विश्वास दिखा गरिमा रखते
अस्तित्व रौंद अभिशाप दिया ।


निज आहुति दी पत्थर बन
भस्म हुआ ऋषि का सम्मान
दम्भी पौरुष की यातना सुन
था घोर अनैतिक और अपमान ।


शिलाखंड था प्रतीक्षा में
कब होगा मेरा उद्धार
मोक्ष मिलेगा सद्गति में
चरण रज देंगे तारणहार ।

टूटा नहीं शाप संलिप्त
हर स्त्री लगती शापित है
बैकुंठ से निकलो प्रभु अवतरित
अभिशप्त अहिल्या प्रार्थित है ।

Wednesday, September 22, 2010

मछलियाँ

तैर रही हैं
सैंकड़ों मछलियाँ
मेरे भीतर
और बह रही है
ए़क नदी ।

नदी
हंस रही है
कल कल स्वर में
और संगीत बज रहा है
नदी में ।

आज
नशा है
नदी में
समाने या फिर
समा लेने का .

वह
ना तो टूट रहा है
ना ही डुबो रहा है
हाँ लहरों पर
सवार हो
यात्रा कर रहा है
समय से परे ।

मछलियाँ
बाहर आकर
छू लेना चाहती हैं
तुम्हें
और जी लेना चाहती हैं
पानी के सूखने से पहले ।

Monday, September 20, 2010

बोझ

प्रेम की
अधिकता
गठरी
भावों की
कहीं
लग तो नहीं रही
बोझ
भारी ।

हाथो में
हाथ
वादा लिया
रहने को साथ
कहीं
वचन का बोझ
लग तो नहीं रहा
भारी ।

निकटता
हुई अति
चाहते हो
कुछ दूरी या
निकटता का
बोझ
हो गई
मजबूरी ।

बोझ
जब भी
बनने लगे
मधुर रिश्ता
कह देना
मुझको
हो जायेंगे हम
विदा ।

Wednesday, September 15, 2010

पतझड़ की तरह

हथेलियों में भर दूं तुम्हारी
सरसों के फूल
और तुम्हारे कानों में कहूं
वसंत आ गया है ।

चाहता हूँ गेहूं की बालियों से
गूँथ दूं तुम्हारे केश
और तुम्हारे कानों में कहूं
वसंत आ गया है ।

साख से झड़ते
पत्ते रख दूं तेरे क़दमों में
और तुम्हारे कानों में पूछूं
वसंत के बाद यूं पतझड़ की तरह
ठुकरा तो नहीं दोगी ।

Monday, September 13, 2010

तुम्हारा एहसास

तुम्हारे
एहसास के साए में
जिंदगी की दोपहर
बीत जायेगी
साथ रहा जो तुम्हारा
यह और भी
खूबसूरत हो जाएगी .

तुम्हारे
क़दमों की सधी
लय ताल
भटकने नहीं
देगी मुझे
दे देगी मेरे क़दमों
को भी
एक नई दिशा ।

तुम्हारी
निर्मल सोच
नहीं देगी प्रवेश
विकारों को
मन में मेरे
और तैरेंगे
सुविचार
सबके लिए ।

तुम्हारा
दृढ निश्चय
बढ़ाएगा
मेरा हौसला
भरेगा मुझमें
शक्ति
करने को सामना
रहने को अडिग
विपरीत स्थितियों में भी ।

तुम्हारी
गहरी आँखें
देती हैं सन्देश
परिपक्वता का
ठहराव का
देती हैं निर्देश
छूने को शिखर
और करती हैं प्रेरित
फिर से उठने को
हर हार के बाद ।

तुम्हारा
अदृश्य प्रेम
बढ़ाता है
मेरे मन की
पवित्रता
बताता है
कैसे निभाते है
प्रीत की रीत
मौन रहकर भी ।

Friday, September 10, 2010

सही पहचान

एक राजकुमारी थी
देखने में दुनिया को
नहीं लगती थी
खूबसूरत
दिल था उसका अच्छा
अच्छी थी उसकी सीरत

एक साधारण सा
इंसान आया और
राजकुमारी से करने लगा
प्यार ।

राजकुमारी ने पूछा
ना मेरे पास रूप
ना मेरे पास रंग
फिर क्यों करते हो
मुझसे इतना प्यार ।

वो साधारण युवक
चुप रहा
कुछ नहीं बोला
प्यार करता रहा
राजकुमारी को
बेइन्तहा चाहता रहा ।

राजकुमारी
पूछती रही
बस ए़क सवाल ।

एक दिन
एक आदमी बीमार पड़ा
कोई उसे देखने नहीं आया
राजकुमारी
उधर से रही थी गुजर
उसने बीमार आदमी की मदद की ।

वो युवक
मुस्कुराता रहा
राजकुमारी से प्यार करता रहा
राजकुमारी बस पूछती रही
क्यों करते हो इतना प्यार ।

फिर एक दिन
एक आदमी को जरुरत पड़ी
राजकुमारी ही आगे आयी
युवक देखता रहा
उसे अपनी राजकुमारी पर गर्व था
अपने प्यार पर गर्व था
अभिमान था
राजकुमारी ने फिर पूछा
क्यों करते हो इतना प्यार ।

एक दिन
वो युवक स्वयं
मुसीबत में फंस गया
उसका कोई सगा
कोई दोस्त साथ नहीं आये
राजकुमारी फिर भी आयी ।

राजकुमारी ने फिर पूछा
क्यों करते हो इतना प्यार
एक साधारण से
नहीं मुझमें कुछ खास
फिर क्यों करते हो इतना प्यार ।

युवक आया
अपने साथ
एक जादुई दर्पण लाया
राजकुमारी के सामने उसने दर्पण रखा ।

राजकुमारी को
अपना चेहरा उसमें दिखाई नहीं दिया
उसमें थी
कमल पर विराजमान लक्ष्मी
हंस पर सवार सरस्वती
शिव के साथ पार्वती
और
कृष्ण के साथ राधा ।

राजकुमारी खुद को
पहचान ना सकी
लेकिन
उस साधारण युवक को राजकुमारी की
हो गई थी पहचान ।

राजकुमारी ने
पलट कर देखा
युवक वहां नहीं था
राजकुमारी की सही पहचान दिखाने के लिए
उसने किया था जादूगर से समझौता
और उस जादुई दर्पण के बदले
कर दिया था स्वयं का समर्पण ।

राजकुमारी आज भी है
लेकिन युवक नहीं आ सका लौट कर
आँगन के गमले में
फूल बनकर
आज भी रिझाता है वो
अपनी राजकुमारी को ।

राजकुमारी पता नहीं
कभी पहचान पायेगी उसे
क्या मिल पायेगा युवक को
उसका प्यार
जिसने राजकुमारी को बताई
उसकी सही पहचान
युवक इन्तजार में है
आज भी .

Friday, August 27, 2010

प्रीत

फूलों के रथ पर
होकर सवार
आया है कोई
राजकुमार ।

देखो मिलने चला
अपनी महबूबा को
चुप चुप देखे
अपनी दिलरूबा को ।

बिठला के डोली
पलकों की छावं
सजी है गोरी
है रुनझुन पावं ।

लेकर चला
अपने द्वार
सतरंगी सपने
करते हैं इन्तजार ।

क्या वो करे
कुछ समझ न आये
किससे कहे
जिया का वो हाल ।

देखे जो उसको
तो लब सी जाये
मन की उलझन
कर दे बेहाल ।

बातों ही बातों में
नैना भर आये
आँखों ही आँखों में
रैना बीती जाए ।

क्या यही है 'प्रीत '
कोई तो बताये
इस पागल दिल को
कोई तो समझाए ।

Wednesday, August 25, 2010

तुम्हें छूना

तुम्हें छूना
जैसे मंदिर में
आराधना है
मेरे आराध्य की ।

तुम्हें छूना
जैसे ईश्वर की मूर्ति को
छू कर
माँगना है
अपनों के लिए
बहुत कुछ ।

तुम्हें छूना
जैसे वर्षा की
बूंदों को
हथेलियों में लेकर
महसूस करना है
आसमान को ।

तुम्हें छूना
मिटटी में ए़क
बीज रोपना है
और धरा को
देना है नयापन

तुम्हें छूना
ए़क सुखद स्वप्न
सा है जैसे
नदी के वेग को
अपने भीतर
महसूस करना है ।

तुम्हें छूना
जीवन सा लगता है ।

Wednesday, August 11, 2010

उनकी याद में

अख़बार के सच को
जानता हूँ मैं
हवा के रुख को
पहचानता हूँ मैं ।

लहरों के थपेड़े से
टूट जायेगी नाव
डरकर रुकना नहीं
जानता हूँ मैं ।

सेंध लगा रहा हूँ
मैं सरे-बाजार
परदे में रहना
जानता हूँ मैं ।

उनकी आँखों का नशा
करता है बेकाबू
मन पर काबू करना
जानता हूँ मैं ।

हकीकत होती है
बहुत कड़वी मगर
जहर को पीना
जानता हूँ मैं ।

नहीं आएगी उनको
मेरी याद मगर
उनकी याद में
मरना जानता हूँ मैं ।

Friday, August 6, 2010

ए़क चमकता हुआ तारा

तुमने दिखाया
ए़क चमकता हुआ तारा
आसमान में
असंख्य तारों के बीच
मुझे लगा
जैसे कह रही हो तुम
इस दुनिया की भीड़ से
चुना है तुमने
मुझे
ध्रुव तारे की तरह।


फिर
ए़क बात भी
चाहता हूँ कहना
कि
जब कभी
नहीं मिले
तुम्हे रास्ता
मेरी ओर देखना
मैं
जरुर खड़ा मिलूँगा
तुम्हे
देने को साथ
दिखाने को राह

Wednesday, August 4, 2010

अभी - अभी

ख़ुशी की उम्र
इतनी कम क्यों है
कोई बता दे
जिन्दगी ऐसी क्यों है ।

गम के बादल
छंटते नहीं क्योंकर
सुख का सूरज
डूबता है क्योंकर ।

अभी अभी मिले थे तुम
अभी अभी जाना क्यों है
रोक सकता नहीं क्यों मैं
इतना मजबूर क्यों हूँ मैं ।

आसूं ये रूकते थमते नहीं
खुलकर रो सकता भी नहीं
लबों पर हंसी आई भी नहीं
अभी अभी चली गयी क्यों है ।

शुरू हुआ है अभी सफ़र
न जाने कौन सी रह गुजर
क्या साथ होंगे हमसफ़र
मंजिल पर नजर नहीं क्यों है ।

Monday, August 2, 2010

तुम्हारा संग

अभिनव आनंद तुम्हारा संग
निकटता तेरी बरगद छाँव
धूल धूसरित पगडण्डी पर
ढूंढ़ रहे हैं तेरे पाँव।


पराग सा महक रहा है
मोहक सिन्दूरी रंग
मुस्कान तेरी से रहे सुवासित
मन आँगन सतरंग ।


कहाँ चले गए तुम
मुझे छोड़ मझधार
नजरें ढूंढ रही हैं तुझको
हर खिड़की हर द्वार ।

हर दिन हर पल रखते
अपने नैनों की परिधि में
किसको ढूंढेंगे नयन बावरे
आसपास और स्मृति में ।


नाज उठाओगे किसके
पलकों पर किसे झुलाओगे
भेज दिया है दूर मुझे
कंठ से किसे लगाओगे ।


अधर पंखुरी खिलेगी कैसे
किसे देख रश्मि उतरेगी
पहाड़ सा दिन बीतेगा कैसे
कैसे लम्बी रात ढलेगी ।


तुम से दूर किया किस्मत ने
दिल से दूर न कर पाएगी
जाने को मना किया मन ने
पर याद बहुत फिर आएगी.

Wednesday, July 28, 2010

तुम नहीं तो कुछ नहीं


पानी है
आग है
धरा है
मिटटी है
वायु है
है तो है...
तुम नहीं तो कुछ भी अक्षत नहीं ।

फूल हैं
भौंरे हैं
पहाड़ हैं
झरने हैं
नदी है
सागर है
है तो है
तुम नहीं तो कुछ भी अच्छा नहीं ।

चाँद है
तारे हैं
सूरज है
आकाश गंगाएं हैं
ग्रह हैं
नक्षत्र हैं
है तो हैं
तुम नहीं तो कुछ भी फलित नहीं ।

साँसे हैं
सपने हैं
धड़कन है
खुशबू है
मिन्नत है
दुआएं हैं
हैं तो हैं
तुम नहीं तो कुछ भी अपना नहीं ।


Tuesday, July 27, 2010

क्षितिज

पृथ्वी तुम
मैं आकाश
जितने दूर
उतने पास ।

तुम देखो
उठाकर पलक
मैं देखूं
तुम्हें अपलक ।

तुम हो एक
निर्मल गजल
मुझमें है
वायु सजल ।

नीलकमल तुम
खुशबू मैं
मुझमें तुम
महकूँ मैं ।

तुम सूर्य
मैं नई भोर
तुम चंदा
मैं शीतल डोर ।

उर्जा तुम
ऊष्मा मैं
ह्रदय तुम
स्पंदन मैं ।

मिलन होगा
सुखद सपने
क्षितिज होगा
प्रेमपाश में अपने






Thursday, July 22, 2010

जीतेगी अपनी प्रीत

आकाश
अंजुरी में तेरे
है आँखों में
चाँद
ख़ामोशी मत
ओढो इतना
कि जीवन हो
जाए सांझ

नहीं भाव ने
छला तुम्हें
तिरोहित नहीं
हुआ सम्मान
करना था
जीवन अर्पण
और
सर्वस्व समर्पण

क्रन्दन नहीं
प्रारब्ध तेरा
नहीं रुदन
तेरी नियति
करो विश्वास
मेरा प्रिये
जीतेगी
अपनी अमर प्रीत

Monday, July 19, 2010

कौन है वो

रंग
दर्पण होते हैं
मन का
जैसे तुम्हारी आँखों में जो
शोख रंग है
कह रहा है कि
बसी है किसी की मूरत
और स्मृति उसमे .


झूल रहीं हैं
तुम्हारी अलकें
चूम रही हैं
तुम्हारी पलकें
बंधन से बाहर
निकलने को आतुर
जैसे इन्हें है
किसी का इन्तजार .

धानी चूनर तुम्हारी
उडाए जाती है
बावरी हवा
जैसे कहती है
संग मेरे आओ
पी के देस
बस जाओ .

कदम तुम्हारे
लडखडाये क्यों हैं
रखती हो कहीं
पड़ते कहीं हैं
कहाँ इनको जाना
उनका पता बताना .

कहोगी नहीं
कौन है वो

Saturday, July 17, 2010

आज फिर

आज फिर
मेरे आसमान में
पूरा चाँद है
टिमटिमाते तारे हैं
और असंख्य जुगनू हैं
क्योंकि
तुम करीब हो

आज फिर
साँसों में महक है
मौसम कुछ बहका सा है
मन कुछ गुदगुदा रहा है
क्योंकि
तुम करीब हो

आज फिर
मन चंचल है
तन में लहर सी है
कदम कुछ बहके से हैं
हवा कुछ अलसाई सी है
क्योंकि
तुम करीब हो

Friday, July 16, 2010

इन्तजार

बादलों का झुरमुट है
लेकिन मन का मयूर
नहीं नाचने को तैयार
उसे है किसी का इन्तजार ।

भौरें क्यों चुप हैं
आसमान क्यों खामोश
हवाएं कुछ बहकी सी हैं
तेरे बिन कहाँ मुझे होश ।

रास्ता वही मंजिल वही
पावँ क्यों उठते नहीं
वही मौसम वही मंजर
पलाश क्यों खिलते नहीं ।

पतझड़ में पेड़ों पर
चढ़ाएं हरियाली का रंग
चलो मिलकर उगायें
अंकुर नए संग संग ।

कितने पल बीते तेरे बिन
समय कटता घड़ियाँ गिन
कैसे काटूं रैना जब
ना कटे तुम बिन ये दिन ।

Thursday, July 15, 2010

जीवन है कहानी

जीवन
सुबह साँझ की
है कहानी
दिन और रात
इसकी रवानी ।

कभी पाउँगा तुम्हें
उससे पहले
खोने
की कहानी

सब कुछ मेरा है
ये भ्रम
बंद आँखों से
देखते सवेरा ।

सपने और हकीकत
में है दूरी का
बसेरा
नहीं कुछ मेरा ।

रौशनी जो है
छलावा ही है
परछाई जो है
बस मेरी है ।

Wednesday, July 14, 2010

कहानी हूँ मैं

नदी का प्रवाह हूँ
किसी का हार हूँ
नेह भरा अभिसार हूँ
मैं किसी का प्यार हूँ ।

एक प्रेम पगा गीत हूँ
किसी का मनमीत हूँ
धड़कती धड़कन हूँ मैं
ह्रदय में बसा स्पंदन हूँ ।

गेसुओं की छावं हूँ
रेशम का गावं हूँ
घनेरी घटा बन छा जाऊं
सपनों की ठावं हूँ ।

काजल की धार हूँ
प्रीत की पतवार हूँ
ख़ुशी से जाते हैं छलक
मैं किसी की आन हूँ ।

एक जुगनू हूँ
कंगन की खनखन हूँ
तारों भरी रात हूँ
मैं तेरा श्रृंगार हूँ ।

लाज का पानी हूँ
दिल की रवानी हूँ
लबों पर न आये कभी
मैं ऐसी कहानी हूँ .

Sunday, July 11, 2010

एक नजर भर

एक गुलाबी मुस्कान
खिलती है
तुम्हारे होठों पर
और ठहर जाती है
गालों पर
अबीर की
एक पतली परत।

कोई भी बात
तुम कहते हो यूँ ही
और मन के आँगन में
फिरती है
तुम्हारी स्मृति की
रंगीन तितली।

एक हल्का-सी छुअन
हो जाती है तुमसे
और मोगरा
खिल उठता है
दिल की स्निग्ध क्यारी में।

एक पल के लिए
दिखता है तुम्हारा चेहरा
और पलकों की तलहटी में
देर तक लहराता है
मुस्कुराता चाँद।

एक नजर भर
देखते हो तुम
और देह के सितार में
तरंगित होती है
प्यार की रागिनी।

Thursday, July 8, 2010

पहला बादल

आकाश में पहला बादल
चातक करता था इन्तजार
बदरा चले गए बिन बरसे
प्यासा ही रह गया बेकरार ।

मानसून की बूँद न आई
धरती रह गई प्यासी सी
मेघ न आये बहार न आई
बहे गरम हवा बौराई सी ।

पवन खुश्क नहीं रही नमी
नम थी जो मेरी आँखें
पत्तों में काई की कमी
उड़ने को आतुर मेरी पांखें ।

क्यों सूना है दालान मेरा
ये घन दल क्यों लौट गए
चातक ने भी छोड़ दी आस
क्या प्रिय मेरे हैं रूठ गए ।

कौन सुने हिया की हाय
जीवन में नहीं जान यहाँ
किसको दें उलाहना यह
तुम बिन अटके हैं प्राण यहाँ ।

तुम्हारा नशा

बीता बसंत वर्षा आने को है
तुम्हारा नशा ना जाने को है ।

जो गुलाबी स्मित ओढ़ आयी हो तुम
मोहकता मुझ पर छा जाने को है

बेखबर तुम हलचलों से दुनिया की
काजल कोई तुम्हारा चुराने को है ।

हर रंग समा जाना चाहता है तुममें
इन्द्रधनुष भी नभ से उतर आने को है ।

इन्तजार तुम्हारा रहता है हर पल
तुम्हारे बिन धड़कन रुक जाने को है ।

लगा लो इक बार ह्रदय से प्रिये
समय का ये पल ठहर जाने को है ।

Tuesday, July 6, 2010

किताब

किताब के पन्नों को
पलटते हुए ये ख्याल आया
यूं पलट जाए जिन्दगी
सोचकर रोमांच हो आया ।

ख्वाबों में जो बसते हैं
सम्मुख आ जाएँ तो क्या हो
किताबें सपने बेच रहीं हैं
हकीकत हो जाए तो क्या हो ।

उनका अक्स साथ लेकर
आँख है खुलती दिन ढलता
पलकें भारी होने से लेकर
रात ढले फिर दिन खुलता ।

हर पन्ने से प्यार मुझे
हर हरफ लगे उपहार मुझे
जो रहते हैं संग संग
चाहूं देना सब राग रंग ।

पढ़ना चाहूं मैं ऐसे
साँस समाई हो जैसे
हर पन्ना बने प्रेम अनुबंध
फूल और खुश्बू का सम्बन्ध ।

Sunday, July 4, 2010

इनमें भरा है जीवन

तुम्हारी आँखें
जैसे समाया है उसमें
सूर्य
और झिर झिर झलकती हैं
रश्मियाँ

इनमें भरी है
जीवन की
ज्योति
जगमग करती है
जैसे प्रकृति की हो
दामिनियाँ

ये पनीले नयन
बसता है इनमें
सुकून
मेरा बसेरा है
सपने करते है जहाँ
सरगोशियाँ

तुम्हारा मन
छलकता है नेह जिनमें
है समंदर
लहरें करती हैं जहाँ
अठखेलियाँ

तुम्हारा सान्निध्य
शीतलता भरी है जिसमें
है घनी छाँव
जहाँ खिलखिलाती हैं
चाँदनियाँ ।